डीएनए हिंदीः Samudra Manthan Significance- सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं में वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन देवता और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन की कहानी सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं. समुद्र मंथन में कई ऐसी चीजें प्राप्त हुई जो बहुत ही अमूल्य थी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि की (Lord Dhanvantari Birth) उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई है. इस मंथन के दौरान 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई थी. जिसमें से रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि समुद्र से हाथ में अमृत कलश लेकर निकले थे, लेकिन क्या आप जानते हैं समुद्र मंथन क्यों हुआ था? चलिए जानते हैं इसके पीछे की वजह
देवराज इंद्र को मिला था श्रीहीन का श्राप
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार देवराज इन्द्र अपनी किसी यात्रा से वापस बैकुंठ धाम जा रहे थे, उसी समय दुर्वासा ऋषि उन्हें रास्ते में मिल गए और देवराज इन्द्र को फूलों की एक माला भेंट. की लेकिन अपने मद और वैभव में डूबे देवराज इन्द्र ने वह माला अपने हाथी ऐरावत के सिर पर डाल दी और ऐरावत हाथी ने वह माला झटक कर जमीन पर गिरा दी. इससे दुर्वासा ऋषि नाराज हो गए. तब उन्होंने कहा यह मेरे साथ साथ माता लक्ष्मी का भी अपमान है. जो कदापि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और गुस्से में ऋषि ने इंद्र को श्रीहीन यानी लक्ष्मीविहीन होने का श्राप दे दिया.
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श्री के स्थापना के लिए हुए समुद्र मंथन
दुर्वासा ऋषि के श्राप के परिणाम स्वरूप अष्टलक्ष्मी क्षीर सागर में विलुप्त हो गई थी. अपनी इस दशा से परेशान होकर भगवान इंद्र सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान मांगा. तब भगवान विष्णु ने देवताओं को श्री की पुन: स्थापना और असुरों को अमृत का लोभ देकर समुद्र मंथन के लिए तैयार किया. जिसके बाद समुद्र मंथन हुआ जिसमें 14 रत्नों की प्राप्ति हुई. जिसके बाद आखिरी में मां लक्ष्मी प्रकट हुईं. मां लक्ष्मी के वापस आने पर देवताओं और असुरों के धन और गहने वापस आ गए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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