Sankashti Chaturthi 2021 Puja Vidhi: आज है संकष्टी चतुर्थी, यहां देखें पूजा विधि

| Updated: Dec 22, 2021, 11:26 AM IST

आज के दिन इंद्र योग दोपहर 12:04 बजे तक है, इंद्र योग में संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. आप दोपहर में इस समय तक गणेश पूजा कर सकते हैं.

डीएनए हिंदी: आज यानी 22 दिसंबर 2021 को संकष्टी चतुर्थी है. गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आज का दिन बेहद शुभ माना गया है. दरअसल बुधवार का दिन और चतुर्थी की तिथि गणेश जी को ही समर्पित है. गणेश जी की पूजा के लिए इस संयोग को अति उत्तम माना गया है.

जानकारी के अनुसार, आज के दिन इंद्र योग दोपहर 12:04 बजे तक है. इंद्र योग में संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. आप दोपहर में इस समय तक गणेश पूजा कर सकते हैं. कहा जाता है कि आज के दिन गणेश जी की आरती और चालीसा का पाठ विशेष पुण्य प्रदान करता है. संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय रात 08:12 बजे होगा. 

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि-

  • संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: नहा-धोकर सूर्य को जल अर्पित करें. इसके बाद रात संकष्टी चतुर्थी व्रत, गणेश पूजा का संकल्प लें.
  • गणेश जी की मूर्ति स्थापित कर गंगाजल से अभिषेक करें और चंदन लगाएं.
  • इसके बाद गणेश जी को वस्त्र, फूल, माला, 21 दूर्वा, फल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, मोदका का भोग अर्पित करें.
  • अब गणेश चालीसा का पाठ करें और फिर व्रत कथा पढ़ें. 
  • पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें.
  • रात के समय चंद्रमा को जल अर्पित कर पारण करें. 

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गणेश जी की आरती-
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

गणेश जी की चालीसा-
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।

जय जय जय गणपति गणराजूमंगल भरण करण शुभ काजू।
जय गजबदन सदन सुखदाता विश्व विनायक बुद्घि विधाता ।।

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।
राजत मणि मुक्तन उर माला स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं मोदक भोग सुगन्धित फूलं।
सुंदर पीताम्बर तन साजित चरण पादुका मुनि मन राजित।।

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता गौरी ललन विश्व विख्याता।
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे मूषक वाहन सोहत द्घारे।।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी अति शुचि पावन मंगलकारी।
एक समय गिरिराज कुमारी पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी।।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा।
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी बहुविधि सेवा करी तुम्हारी।।

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला बिना गर्भ धारण, यहि काला।।

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना पूजित प्रथम, रुप भगवाना।
अस कहि अन्तर्धान रुप है पलना पर बालक स्वरुप है।।

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं।।

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं।
लखि अति आनन्द मंगल साजा देखन भी आये शनि राजा।।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं बालक देखन चाहत नाहीं।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।।

कहन लगे शनि, मन सकुचाई का करिहौ शिशु मोहि दिखाई
नहिं विश्वास उमा उर भयऊ शनि सों बालक देखन कहाऊ।।

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा।
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी सो दुख दशा गयो नहीं वरणी।।

हाहाकार मच्यो कैलाशा शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो काटि चक्र सो गज शिर लाये।।

बालक के धड़ ऊपर धारयो प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे।।

बुद्ध परीक्षा जब शिव कीन्हा पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा।
चले षडानन, भरमि भुलाई रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई।।

चरण मातुपितु के धर लीन्हें तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।
धानी गणेश कही शिवाये हुए हर्षयो नभा ते सुरन सुमन बहु बरसाए।।

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई शेष सहसमुख सके न गाई।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा जग प्रयाग, ककरा।
दर्वासा अब प्रभु दया दीन पर कीजै अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।।