Sawan 5th Somvar fast: कल सावन का आखिरी सोमवार, सुख-समृद्धि और धन पाने के लिए करें ये उपाय

Written By ऋतु सिंह | Updated: Aug 18, 2024, 01:16 PM IST

सावन सोमवार पर करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ

सावन का कल आखिरी सोमवार का व्रत होगा, इस दिन भगवान शिव से सुख-समृद्धि और धन पाने के लिए कुछ विशेष उपाय कर सकते हैं.

सावन का आखिरी और 5वां सोमवार 19 अगस्त दिन सोमवार को है और इस दिन अगर आप एक खास स्त्रोत का पाठ करेंगे तो आपके मन की हर आशा पूरी हो सकती है. सुख-समृद्धी, धन और अखंड सौभाग्य भी मिलेगा और शत्रुओं का नाश भी. 

श्रावण मास में भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सोमवार 19 अगस्त को होगा. इस दिन दो शुभ संयोग एक साथ बने हैं. बुधादित्य योग के साथ-साथ गजकेसरी योग भी बनेगा. इस दौरान मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन की कमी नहीं होगी.

श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. श्रावण के तीसरे सोमवार को रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र का जाप करने से अनेक कष्ट दूर होते हैं और संकट दूर होते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि शिव तांडव स्तोत्र शिव की शक्ति और सुंदरता का वर्णन करता है. यह स्तोत्र लंका के राजा रावण द्वारा लिखा गया था, जो भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था. ऐसा माना जाता है कि रावण ने शिव की स्तुति और मोक्ष की याचना करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी.

पौराणिक कथा के अनुसार रावण पूरा कैलाश पर्वत ही उठाकर लंका ले जा रहा था. उसकी शक्ति अहंकारी हो गई. शंकर उनके अहंकार को नष्ट करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने अंगूठे से दबाकर उस स्थान की स्थापना की, जहां पर्वत है. रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और अहंकार गिर गया. उस समय रावण ने शंकर से क्षमा माँगने के लिए उनकी स्तुति की. यह स्तुति शिव तांडव स्तोत्र है. इस शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शंकर प्रसन्न हुए. उन्होंने रावण को न केवल लंका बल्कि ज्ञान, विज्ञान और अमरत्व का भी उपहार दिया.

इस अवसर पर आइए श्रावण के आखिरी सोमवार को रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें.

शिव तांडव स्तोत्र

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥॥

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्र संपूर्णम
 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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