Sharad Purnima 2023: कब है साल की सबसे श्रेष्ठ शदर पूर्णिमा, जानें इसकी तारीख, पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

Written By नितिन शर्मा | Updated: Sep 24, 2023, 07:35 AM IST

शरद पूर्णिमा साल की सबसे क्षेष्ठ पूर्णिमाओं में से एक है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. शास्त्रों की मानें तो शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं.

डीएनए हिंदी: आश्विन माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा है. इसके अलावा भी कुछ जगहों पर इसे पूनम पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कोजागिरी पूर्णिमा कहा जाता है. आश्विन माह की पूर्णिमा को आने वाली शरद पूर्णिमा साल की सबसे क्षेष्ठ पूर्णिमाओं में से एक है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. शास्त्रों की मानें तो शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं, जिनके घर साफ सुथरे और दरवाजे खुले मिलती हैं. उस घर में मां प्रवेश करती है. साथ ही चंद्रमा की रोशनी से अमृत वर्षा होती है. इसके लिए चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है. अगले दिन इस खीर को खाना बहुत ही शुभ  और फलदायक माना जाता है. आइए जानते हैं कब है शरद पूर्णिमा, इसकी पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व...

इस दिन है शरद पूर्णिमा

इस साल आश्विनी माह की शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर शनिवार के दिन सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी. इसका समापन 29 अक्टूबर की रात 1 बजकर 53 मिनट पर होगा. शरद पूर्णिमा रविवार के दिन 29 अक्टूबर को मनाई जाएगी. इस दिर चंद्रोदय 5 बजकर 20 मिनट पर हो जाएगा. इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, जो शुभ और फलदायक होती है. 

पूर्णिमा पर यह है पूजा का शुभ मुहूर्त

शरद पूर्णिमा पर धन की देवी माता लक्ष्मी की अर्चना करना बहुत ही शुभ होता है. इस दिन माता की पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं. अन्न धन धान्य से घर को भर देती हैं. मां को प्रसन्न करने के लिए शुभ मुहूर्त में उनकी पूजा करें. इसके लिए पूर्णिमा पर 3 शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. इनमें से पहला शुभ मुहूर्त शरद पूर्णिमा की रात 8 बजकर 52 मिनट से 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. 10 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 5 मिनट तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त रहेगा. वहीं 12 बजकर 5 मिनट से 1 बजकर 41 मिनट पर सामान्य मुहूर्त रहेगा. इनमें से किसी भी एक मुहूर्त में मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन के भंडार भरेंगे. 

ये है शरद पूर्णिमा का महत्व 

शास्त्रों की मानें तो शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था. इसलिए शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होते हैं. इसी के चलते आसमान से अमृत की वर्षा होती है. इस अमृत धारा को ग्रहण करने और पाने के लिए शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर खुले आसमान को नीचे रखने की प्रथा है. इसे अगले दिन सुबह उठकर खाने से अमृत गुण प्राप्त होते हैं. धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा आती है. घर में सुख समृद्धि बढ़ाती है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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