Navratri 2024 Durga Chalisa: शारदीय नवरात्र में इन नियमों का ध्यान रखते हुए करें दुर्गा चालीसा का पाठ, पूर्ण होगी हर इच्छा

Written By नितिन शर्मा | Updated: Oct 01, 2024, 06:00 PM IST

इस बार 3 अक्टूबर 2024 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होगी. नौ दिनों तक माता के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना और पाठ किया जाएगा. ऐसे में मां दुर्गा की चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ होता है. मन की हर इच्छा पूर्ण हो जाती है.

Shardiya Navratri 2024 Durga Chalisa: हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का बड़ा महत्व है. शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर 2024 से होगी. यह पूरे नौ दिनों तक रहेंगे. माता के नौ दिन अलग अलग 9 स्वरूपों के लिए समर्पित होते हैं. हर दिन मातारानी की पूजा-अर्चना के साथ ही भक्त दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ भी करते है. ऐसा करने से माता रानी अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं. सुख और समृद्धि प्रदान करती हैं. आइए जानते हैं दुर्गा चालीसा का पाठ के फायदे और करने का तरीका...

ये हैं दुर्गा चालीसा पढ़ने के नियम

दुर्गा चालीसा पाठ करने से पूर्व सुबह उठकर स्नान करें. साफ सुथरे कपड़े पहनें. इसके बाद घर में मातारानी की चौकी विराजित करें. माता रानी की पूजा अर्चना करें. मां दुर्गा को फूल, रोली, दूध, दीप का पसंदीदा भोग लगाएं. साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ करें. इससे मन को शांति और माता रानी की आशीर्वाद प्राप्त होता है. मन की हर इच्छा पूर्ण हो जाती हैं. 

..दुर्गा चालीसा..

नमो नमो दुर्गे सुख करनी. नमो नमो अंबे दुःख हरनी.

निरंकार है ज्योति तुम्हारी. तिहूं लोक फैली उजियारी.

शशि ललाट मुख महाविशाला. नेत्र लाल भृकुटि विकराला.

रूप मातु को अधिक सुहावे. दरश करत जन अति सुख पावे.

अन्नपूर्णा हुई जग पाला. तुम ही आदि सुन्दरी बाला.

प्रलयकाल सब नाशन हारी. तुम गौरी शिवशंकर प्यारी.

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें. ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें.

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा. परगट भई फाड़कर खम्बा.

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो. हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो.

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं. श्री नारायण अंग समाहीं.

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी. महिमा अमित न जात बखानी.

मातंगी अरु धूमावति माता. भुवनेश्वरी बगला सुख दाता.

श्री भैरव तारा जग तारिणी. छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी.

कर में खप्पर खड्ग विराजै. जाको देख काल डर भाजै.

सोहै अस्त्र और त्रिशूला. जाते उठत शत्रु हिय शूला.

नगरकोट में तुम्हीं विराजत. तिहुँलोक में डंका बाजत.

महिषासुर नृप अति अभिमानी. जेहि अघ भार मही अकुलानी.

रूप कराल कालिका धारा. सेन सहित तुम तिहि संहारा.

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब. भई सहाय मातु तुम तब तब.

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी. तुम्हें सदा पूजें नर-नारी.

प्रेम भक्ति से जो यश गावें. दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें.

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई. जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई.

शंकर अचरज तप कीनो. काम क्रोध जीति सब लीनो.

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को. काहु काल नहिं सुमिरो तुमको.

शक्ति रूप का मरम न पायो. शक्ति गई तब मन पछितायो.

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा. दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा.

मोको मातु कष्ट अति घेरो. तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो.

आशा तृष्णा निपट सतावें. रिपु मुरख मोही डरपावे.

करो कृपा हे मातु दयाला. ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला.

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं. तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं.

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै. सब सुख भोग परमपद पावै.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)

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