Maa Durga Sandhya Aarti: दुर्गा पूजा के दौरान संध्या आरती करने का विशेष महत्व, माता रानी की प्रसन्नता के साथ बन जाते हैं हर काम

Written By नितिन शर्मा | Updated: Oct 02, 2024, 05:25 PM IST

बिना आरती के कोई भी पूजा अर्चना से लेकर हवन तक को अधूरा माना जाता है. वहीं दुर्गा पूजा में संध्या आरती का विशेष महत्व है. इसे करने से माता की कृपा प्राप्त होती है. 

Maa Durga Shandiya Aarti: हिंदू धर्म में किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना या हवन के बाद आरती का विशेष महत्व है. आरती के बिना पूजा अर्चना अधूरी मानी जाती है. इसके पूर्ण होने के बाद आरती को सफल और संपूर्ण माना जाता है. वहीं शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना से लेकर नवमी तिथि तक नौ दिनों में माता रानी की सुबह और शाम यानी संध्या आरती करना जरूरी होती है. दुर्गा पूजा में संध्या आरती नहीं होने पर पूजा को अपूर्ण माना जाता है. पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिलता. इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो रही है. नवमी 12 अक्टूबर को रहेगी. ऐसे में संध्या आरती जरूर करनी चाहिए. आइए जानते हैं नवरात्रि में क्यों की जाती है संध्या आरती और इसका महत्व...

पूजा में इसलिए की जाती है आरती

ज्योतिषाचार्य प्रीतिका मोजूमदार बताती हैं सभी देवी देवताओं की पूजा अर्चना में आरती करना बेहद जरूरी होता है. इसके बिना पूजा अपूर्ण मानी जाती है. इसके पीछे की वजह यह है कि ज्यादातर लोग भगवान की पूजा अर्चना में उनके मंत्र या स्तोत्र का उच्चारण नहीं कर पाते. उन्हें इनकी जानकारी नहीं होती. इसके अलावा कुछ लोगों को उक्त देवी देवता की संपूर्ण पूजा विधि नहीं पता होती. ऐसी स्थिति में आरती करना जरूरी होता है. आरती सरल और सहज होती है. पूजा के अंतिम आरती करने से भगवान भी प्रसन्न होती हैं. इस दौरान भक्त पूजा अर्चना में हुई गलती को स्वीकारता है और अपनी कामना भगवान के सामने आरती के माध्यम से रख देता है. इसी के बाद पूजा सफल मानी जाती है. वहीं दुर्गा पूजा में संध्या आरती का बड़ी विशेषता है. संध्या आरती में मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है. 

यह है संध्या आरती का महत्व

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, वैसे तो संध्या आरती नियमित रूप से की जाने वाली आरती के समान ही होती है, लेकिन दुर्गा पूजा में आरती का विशेष महत्व होता है. इसे विशेष तरीके से किया जाता है. नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान संध्या आरती के लिए माता रानी के सामने ज्योत जलाई जाती है. इसके बाद माता रानी की श्रृंगार किया जाता है. मां दुर्गा को कपड़े, फल, फूल, मेवा और गहने अर्पित किया जाते हैं. इसके बाद शंख और ढोल नगाड़ों के साथ ही संध्या अरती की जाती है. इस आरती में धुनुची नाच करके मां को प्रसन्न किया जाता है. नवदुर्गा की पूजा में नौ दिनों तक संध्या आरती चलती है. इससे व्यक्ति की हर कामना पूर्ण हो जाती है. माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)

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