Sindoor Khela: 450 साल पुरानी है सिंदूर खेला की प्रथा, किन्नर भी एक दूसरे को लगाती हैं सिंदूर

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 01, 2022, 08:58 AM IST

450 साल से भी पुरानी है सिंदूर खेला की प्रथा, जानें कैसे निभाई जाती है यह परंपरा

Sindoor Khela: बंगाल में नवरात्रि के अंतिम दिन सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है. इस दौरान महिलाएं मां को सिंदूर अर्पित करती हैं.

डीएनए हिंदी: Sindoor Khela in Durga Puja Significance- देश भर में नवरात्रि का पावन पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है, मंदिर और पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना कर सच्ची श्रद्धा से लोग माता रानी के सभी रूपों की उपासना कर रहे हैं. बंगाल में दुर्गा पूजा (Bengal Durga Puja 2022) के दौरान कई तरह की रस्में निभाई जाती है. विसर्जन के दिन भी यहां एक खास रस्म निभाई जाती है, जिसे सिंदूर उत्सव या सिंदूर खेला (Sindoor Khela) कहते हैं. इस रस्म में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया जाता है,  जिसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और शुभकामनाएं देती हैं. बंगाल में इस अवसर पर कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों भी आयोजन होता है.  

बंगाल में नवरात्रि का त्योहार पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि के अंतिम दिन सिंदूर खेला उत्सव मनाया जाता है, जिसमें सुहागन महिलाओं को शामिल किया जाता है. पहले इस रस्म में विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता था लेकिन अब वहां सामाजिक बदलाव हुए हैं जिसके चलते सभी महिलाओं को सिंदूर खेला की रस्म में शामिल किया जाने लगा. 

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ऐसे निभाई जाती है सिंदूर खेला की रस्म 

विसर्जन के दिन होने वाली सिंदूर खेला की रस्म में महिलाएं पान के पत्ते से मां के गालों को स्पर्श करती हैं, जिसके बाद मां दुर्गा की मांग में सिंदूर भरती हैं और माथे पर सिंदूर लगती हैं. यह करने के बाद मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है. विधि-विधान से मां की पूजा अर्चना कर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और देवी दुर्गा से लंबे सुहाग की कामना करती हैं.  

बंगाल में यह रस्म सदियों से निभाया जा रही है. जहां इस रस्म के साथ बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्‍य की परंपरा भी निभाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बंगाल में यह रस्म 450 साल से निभाया जा रही है. कहा जाता है कि इस रस्म को निभाने से सुहाग को लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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मां को दी जाती है भेंट

सिंदूर खेला की रस्म के बाद मां दुर्गा की विदाई के समय देवी बॉरन की प्रथा निभाई जाती है. बंगाल में यह मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा मायके आती हैं और 10 दिनों तक रुकने के बाद पुनः ससुराल चली जाती हैं. इसलिए जिस तरह मायके आने पर लड़कियों की सेवा की जाती है, वैसे ही नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की पूजा और सेवा की जाती है. इसलिए जैसे बेटियों को विदा करते समय खाने-पीने की चीजें और अन्य प्रकार की भेंट दी जाती है, वैसे ही मां दुर्गा के विदाई के दिन भी उनके साथ पोटली में श्रृंगार का सामाना और खाने-पीने की चीजें रख दी जाती हैं. देवलोक तक पहुंचने में उनको रास्ते में कोई परेशानी न हो इसलिए उनके साथ यह सभी चीजें रख दी जाती है, बंगाल में इस प्रथा को देवी बॉरन कहा जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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