Som Pradosh Vrat 2022: सोम प्रदोष व्रत पर बन रहे दोहरे शुभ संयोग, जानिए मुहूर्त और पूजा विधि

ऋतु सिंह | Updated:Jul 11, 2022, 02:54 PM IST


सोम प्रदोष व्रत पर बन रहे दोहरे शुभ संयोग

प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत रखने से मनोकामना पूरी होती है. आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा का विधि विधान.

डीएनए हिंदी:  हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार प्रदोष व्रत 11 जुलाई, सोमवार यानी आज है. सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत के नाम से जानते हैं. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है. यह दिन और व्रत, दोनों ही भगवान शंकर को समर्पित है. 

सोम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 11 जुलाई को सुबह 11 बजकर 14 मिनट से शुरू होगी, जो कि 12 जुलाई को सुबह 07 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. शिव पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 22 मिनट से पात 09 बजकर 24 मिनट तक रहेगा.

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प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में की जाता है.  सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है.

सोम प्रदोष व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रहती थी. पति का स्वर्गवास हो चुका था, इसलिए उसका अब कोई सहारा नहीं था. वह सुबह होते ही पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भीख में जो मिलता उससे दोनों का गुजारा चलता.

एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण करके उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा.

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एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. वैसा ही किया गया.

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन बदलते हैं.

 

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