Devi Shaktipeeth : काशी में देवी सती की गिरी थीं आंखें, भगवान शिव के साथ जरूर करें इस शक्तिपीठ का दर्शन

ऋतु सिंह | Updated:Sep 29, 2022, 08:07 AM IST

काशी में देवी सती की गिरी थीं आंखें

Vishalakshi Devi Mandir: काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर 51 शक्‍तिपीठों में से एक विशालाक्षी मंदिर है.

डीएनए हिंदीः वाराणासी में शिव की पत्‍नी सती का कर्ण कुण्डल की मणि गिरा था. देवी के पीठ को मणिकर्णी शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक राजधानी काशी नगरी बाबा विश्वनाथ संग मां विशालाक्षी के लिए भी जानी जाती है. दक्षिण वाली माता के नाम से प्रसिद्ध इस पावन शक्तिपीठ के बारे चलिए जानें.
 
मान्यता है कि जिन स्थानों पर देवी सती के अंग गिरे वो सभी स्थान शक्तिपीठ बन गए. जिस जगह पर भगवती सती का कर्णकुंडल गिरा आज वह पावन स्थान मां विशालाक्षी के पावन धाम के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव ने इन सभी शक्तिपीठों पर जाकर साधना की और अपने स्वरूप से काल भैरव को उत्पन्न किया था. वाराणसी में भी इस शक्तिपीठ के समीप काल भैरव विराजमान हैं. 

यहां है शिव और शक्ति का है संगम
भक्ति, शक्ति और समृद्धि प्रदान करने वाले पावन शक्तिपीठों में से एक है मां विशालाक्षी देवी का दिव्य धाम. इस पावन शक्तिपीठ को स्थानीय लोग दक्षिण की देवी के रूप में जानते हैं. मंदिर की बनावट में दक्षिण भारतीय कलाकृतियों के दर्शन होते हैं. मां विशालाक्षी देवी का यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा विश्वनाथ के पावन धाम के समीप मीरघाट मोहल्ले में स्थित है. प्राचीन काशी नगरी शिव और शक्ति दोनों का एक प्रमुख केंद्र है. मां गंगा के तट पर बसी काशी नगरी में आने वाला तीर्थयात्री गंगा स्नान के पश्चात् बाबा विश्वनाथ के दर्शनों के साथ आद्यशक्ति के दर्शन करना नहीं भूलता. क्योंकि इससे उसे शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

मंदिर में हैं तेवी की दो प्रतिमाएं
काशी के इस शक्तिपीठ में माता विशालाक्षी की दो प्रतिमा है – एक चल और दूसरी अचल. दोनों ही प्रतिमाओं का समान रूप से पूजा – अभिषेक आदि होता है. चल मूर्ति की विशेष पूजा नवरात्र के समय विजयादशमी पर्व वाले दिन घोड़े पर बैठा कर की जाती है. जबकि अचल मूर्ति की विशेष पूजा साल में दो बार की जाती है. जिसमें से एक भादौं तृतीया के दिन ( कृष्ण पक्ष की कजरी वाले दिन ) माता की जयंती के रूप में, तो दूसरी दीपावली के दूसरे दिन माता का अन्नकूट करके किया जाता है. जबकि चैत्र के नवरात्र में मां विशालाक्षी का नव गौरियों में पंचमी के दिन माताजी का दर्शन होता है. हालांकि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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