हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, संस्कारों और शिक्षा से ही व्यक्ति का जीवन संवरता है. इसलिए हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में विद्यारंभ संस्कार भी किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सभी 16 संस्कारों (16 Sanskar) में विद्यारंभ संस्कार को नौवें स्थान पर रखा गया है और जब बालक या बालिका शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाते हैं, तब उनका विद्यारंभ संस्कार (Vidyarambh Sanskar) कर दिया जाता है. आइए जानते हैं सनातन धर्म में विद्यारंभ संस्कार का महत्व क्या है और बच्चे का विद्यारंभ संस्कार किस उम्र तक करा देना चाहिए?
क्या है विद्यारंभ संस्कार का महत्व
भारत में विद्या और ज्ञान को लेकर कितनी जागरूकता थी, इसका अंदाजा आप तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों से लगा सकते है. इन विश्वविद्यालयों में दुनियाभर के छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे. हर माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी विद्या में निपुण हो.
हमारे पूर्वज भी अपने बालक-बालिका को उच्च शिक्षा देना चाहते थे, इसलिए बच्चों के अंदर ज्ञान के प्रति जिज्ञासा डालने के लिए विद्यारंभ संस्कार किया जाने लगा. इस संस्कार में न केवल शिक्षा, बल्कि बच्चों मे सामाजिक और नैतिक गुण के वास की भी प्रार्थना की जाती है.
विद्यारंभ संस्कार में गणेश जी और माता सरस्वती के पूजन विधान है. खासतौर से सरस्वती पूजा के दिन बच्चे का यह संस्कार कराना बहुत ही शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं किस उम्र तक करा देनी चाहिए बच्चे का विद्यारंभ संस्कार...
वेदों और शास्त्रों के मुताबिक, विद्यारंभ संस्कार के लिए सही उम्र पांच साल निर्धारित की गयी है और इस उम्र तक बच्चे का विद्यारंभ संस्कार करा देना चाहिए. क्योंकि इस उम्र तक बच्चा अक्षर का ज्ञान भली भांति समझ जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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