डीएनए हिंदीः नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों अंतिम स्वरूप मां सिद्धिरात्रि का होता है. आज नवमी दोपहर बाद से खत्म हो जाएगी. नौ दिनों व्रत रखने वाले लोग अष्टमी, नवमी या दशमी को पारण करते हैं. तो चलिए जानें कि नवमी का पारण कब होगा और कलश विसर्जन कब और कैसे किया जाता है.
आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि को मां दुर्गा की मूर्ति के साथ कलश स्थापना भी किया गया था और नौ दिनों तक इनकी पूजा करने के बाद कलश का आठवें, नवें या दसवें दिन विसर्जन किया जाता है. नवमी मेे पारण को लेकर दो मत होते हैं. कुछ लोग नवमी तिथि को अस्त होने से पहले तो कुछ दशमी तिथि पर पारण करते हैं.
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पारण के लिए सबसे अच्छा समय क्या?
निर्णय-सिन्धु के अनुसार नवरात्र का पारण के लिए सबसे उपयुक्त समय नवमी तिथि के समाप्त होने और दशमी तिथि के शुरुआत माना जाता है. निर्णय-सिन्धु के अनुसार, नवरात्र का व्रत प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक करना चाहिए. तभी वह पूर्ण माना जाता है.
कैसे करें नवरात्र में पारण
नवमी तिथि को विधिवत तरीके से मां दुर्गा सहित नौ देवियों और कलश की पूजा करें. इसके साथ ही माता को हलवा, पूड़ी, चने और खीर का भोग लगाएं. अष्टमी तिथि को पारण कर रहे हैं, तो सम्मान के साथ कन्याओं को बुलाकर भोग कराएं. इसके बाद हवन आदि करके विसर्जन कर दें.
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नवमी तिथि को नवरात्र का पारण कर रहे हैं, तो विधिवत तरीके से सिद्धादात्री मां की पूजा करके भोग लगाएं. इसके बाद देवी दुर्गा की षोडषोचार पूजा करें. इसके साथ साथ ही कन्या भोज कराएं. अंत में हवन करें. जह हवन की भस्म ठंडी हो जाए, तो बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें और मां दुर्गा से भूल चूक के लिए माफी मांग लें और इस मंत्र का जाप करें.
अथ नवरात्रपारणनिर्णयः. सा च दशम्यां कार्या॥
नवरात्र पारण का समय और शुभ मुहूर्त
पारण का समय- 4 अक्टूबर 4 2022 को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट के बाद
नवमी तिथि प्रारम्भ - 3 अक्टूबर 2022 को शाम 04:37 बजे से
नवमी तिथि समाप्त - 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02:20 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त- 4 अक्टूबर को सुबह 04:38 से 05:27 तक
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अभिजित मुहूर्त- दोपहर 11:46 से दोपहर 12:33 तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:08 से 02:55 तक
रवि योग- 4 अक्टूबर को पूरे दिन
दशमी तिथि को मां दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त
5 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 16 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक
कलश विसर्जन कैसे करें
देवी के पास से कलश हटाने से पहले उनकी आरती और पूजा कर क्षमा याचना कर लें और फिर माता रानी से बोलें की माता रानी आप हमारे यहां जितनी दिन रहीं उतने दिन आपकी कृपा हमारे ऊपर रही और अब जिस कलश के रूप में हमारे यहा आयी अब आप यहां से प्रस्थान करें. कलश का विसर्जन, नारियल और दीया को हटाने को उत्तर पूजन विधि कहा जाता है. कलश के जल को पूरे घर में छिड़क दें और बचे हुए जल को तुलसी या शमी की जड़ में डाल दें.
अब चावल को अपने बाएं हाथ में रखे और अपने दाहिने हाथ से चावल को उठाएं और दान कर दें. अब मिट्टी के दीये, फूल.माला, आदि को किसी पेड़ की जड़ में रख दें. इसके बाद कलश और नारियल के अंदर का पैसा, सुपारी अपने तिजोरी में रख दें, माता का वस्त्र दान कर दे और माता के सभी श्रृंगार को अपने पास ही रख लें और नारियल को किसी कपड़े में बांध कर अपने घर के ईशान कोण यानी उत्तर और पूरब दिशा की ओर रख दे.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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