संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी को समर्पित है. यह पवित्र व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. मार्गशीर्ष माह की संकष्टी चौथ का व्रत 18 नवंबर, सोमवार को रखा जाएगा. संकष्टी चतुर्थी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है. नवंबर माह की संकष्टी चतुर्थी को गणदीप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा.
इस दिन श्री गणेश और चन्द्रमा की पूजा की जाती है. संतान प्राप्ति और बच्चे की लंबी उम्र के लिए माताएं यह व्रत रखती हैं. आइए जानते हैं गणधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि, शुभ समय, उपाय, चंद्रोदय का समय और व्रत खोलने का सही तरीका-
गणदीप संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
- चतुर्थी तिथि 18 नवंबर को शाम 6:55 बजे शुरू होगी
- चौथा अंत- 19 नवंबर शाम 5:28 बजे
- ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 5 बजे से 5 बजकर 53 मिनट तक
- विजय मुहूर्त - दोपहर 1:53 बजे से 2:35 बजे तक
- गोधूलि बेला- शाम 5:26 बजे से शाम 5:53 बजे तक
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- अशुभ समय
- राहु काल- प्रातः 8.6 बजे से प्रातः 9.26 बजे तक
- गुलिक काल- 1:29 बजे से 2:46 बजे तक.
गणपति पूजा विधि
- गणेश जी का जलाभिषेक करना चाहिए
- गणपति को फूल, फल चढ़ाएं और पीला चंदन लगाएं.
- तिल की करछुल या मोदक का भोग लगाना चाहिए
- गणदीप संकष्टी चतुर्थी पर कथा का पाठ करें
- ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें
- पूरी श्रद्धा के साथ गणेश जी की आरती करें.
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- चंद्रमा को देखें और प्रार्थना करें
- फिर पारण कर लें.
- इसके बाद क्षमा प्रार्थना करें.
व्रत कैसे तोड़ें?
संकष्टी चतुर्थी का व्रत खोलने के दूसरे दिन केवल सात्विक भोजन या फल का सेवन करना चाहिए और तामसिक भोजन से बचना चाहिए. संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत खोलने के लिए चंद्रमा के दर्शन और पूजा जरूरी मानी जाती है. चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद यह व्रत पूरा माना जाता है. चंद्रोदय के बाद अपनी सुविधानुसार अर्घ्य देकर व्रत खोलें और अपनी मनोकामना के लिए प्रार्थना करें.
समाधान
संकष्टी चतुर्थी पर गणेश चालीसा का पाठ करना शुभ रहेगा.
चंद्रोदय का समय
चंद्रोदय सोमवार, 18 नवंबर को शाम 7:34 बजे होगा. हालांकि, अलग-अलग शहरों में चंद्रोदय के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी व्रत का शास्त्रों में बहुत महत्व है. इस दिन व्रत करने से साधक की सभी बाधाएं नष्ट हो जाती हैं. संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने और भगवान गणेश का आह्वान करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. संतान की उन्नति और शीघ्र विवाह के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना जाता है. यह व्रत चंद्रमा को देखकर ही खोलना चाहिए.
गणपति जी के बीज मंत्र
- ॐ वक्रतुण्ड दैत्य सूर्य कोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्यकर्ता सर्वदा.
- ॐ एकदन्तै विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंति प्रचोदयात्.
- ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंति प्रचोदयात्॥
- ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्॥
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)
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