Ganesh Chaturthi 2024: घर के मंदिर में गणपति भगवान की सूंड किस तरफ होनी चाहिए, मंदिर में क्यों होती है अलग?

ऋतु सिंह | Updated:Sep 07, 2024, 06:49 AM IST

 गणेश जी की सूंड किस ओर होनी चाहिए

Ganesh Idol Trunk: हर साल भाद्रपद माह में गणेश चतुर्थी होती है और इस साल 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी शुरू हो रही है, अगर आप घर पर गणपति जी की स्थापना करने वाले हैं तो सबसे पहले ये जान लें कि गणपति जी की सूंड कि दिशा क्या होनी चाहिए और मंदिर में गणपति की प्रतिमा के सूंड की दिशा अलग होती है.

भाद्रपद मास की चतुर्थी के दिन गणेश की पूजा की जाती है. कई जगह 3 दिन तो कई जगह 5 या 11 दिनों तक भगवान गणपति को स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है और उसके बाद विसर्जन किया जाता है.  

पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 6 सितंबर शुक्रवार को रात्रि 12:08 बजे हो रहा है. यह शनिवार, 7 सितंबर 2024 को दोपहर 2:05 बजे तक जारी रहेगा. उदया तिथि 7 होने के कारण आज गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी. इसी कारण गणेश चतुर्थी का पावन पर्व उदयातिथि के अनुसार 7 सितंबर को ही उत्सव की शुरुआत होगी. अगर घर पर गणपति की स्थापना करने जा रहे तो जान लें गणेश भगवान की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए.

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घर पर गणपति की सूंड किस तरफ होनी चाहिए?

घर में अगर आप गणपति जी को स्थापित कर रहे तो उनके सूंड की दिशा और मुद्रा का ध्यान रखें. घर में स्थापित किए जाने वाले गणपति जी हमेशा बैठी मुद्रा में होने चाहिए और घर में बाईं तरफ सूंड वाले गणपति की विराजमान करना चाहिए. ऐसी मूर्ति से घर में सकारात्मकता लाती  है और सुख-समृद्धि के साथ आपकी मन की हर मनोकामना को पूरा करती है. जब भी मूर्ति लाएं तो ये ध्यान दें कि गणपति जी किसी  सिंहासन या किसी वाहन पर बैठे हों. 

मंदिर में गणेश जी की सूंड किस तरफ होती है?

मंदिर में जब भी गणपति जी की स्थापना होती है तो उनके सूंड की दिशा दाएं तरफ होती है. ऐसा माना जाता है कि मंदिर में इस तरह की मूर्ति की पूजा से कई कामों में सफलता मिलती है.

क्यों मंदिर में होती है दाएं सूंड वाले गणपति
दाएं सूंड वाले गणपति को जागृत माना जाता है, ऐसे मूर्ती की स्थापना कर्मकांड और विधिवत पूजा के साथ ही करना होता है. दाएं सूंड वाले गणपति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती है. क्योंकि दक्षिण दिशा यम की है और इस ओर से तिर्यक यानी रज लहरियां आती हैं और इस दिशा को संभालने के लिए अपार शक्ति और बल की जरूरत होती है. अगर सही पूजा विधि न हो तो इसके बुरे परिणाम मिलते हैं. इसलिए ऐसी मूर्ति की पूजा हमेशा पंडित के जरिए कराई जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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