महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले ही मतभेद और मनभेद शुरू हो गया था. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध का बीज तभी बो दिया गया था, जब सत्यवती ने राजा शांतनु से विवाह करने के लिए शर्त रख दी थी. शर्त के मुताबिक सत्यवती के पुत्रों को ही हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठाया जाना था और इसके लिए भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली थी.
इसके बाद ऐसी परिस्थितियां बनती गईं की महाभारत में एक-एक कर कई महारथियों ने प्रतिज्ञा लेनी शुरू कर दी. इन महारथियों ने प्रतिज्ञा ले तो ली लेकिन कई इस प्रतिज्ञा को तोड़ने पर विवश भी हो गए. चलिए जानें कि महाभारत में किसने क्या प्रतिज्ञा ली और किन परिस्थितियों में उन्हें अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ी थी.
भीष्म ने ली थी 2 प्रतिज्ञा, लेकिन एक टूट गई
महाभारत में पितामह भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा ली थी और इसे वो जीवन पर्यंत निभाए, लेकिन एक प्रतिज्ञा को वह नहीं निभा सके. असल में कौरव-पांडवों के साथ युद्ध में शामिल होने से पितामह ने पहले मना कर दिया था, लेकिन दुर्योधन ने जब उन पर पक्षपात का आरोप लगाया तो वह इसे सह नहीं सके और ये प्रण किया था कि वह कौरवों के साथ लड़ेंगे और उन्हें जीत दिलाएंगे. लेकिन पितामह अपने इस प्रण को पूरा नहीं कर सके थे.
गांधारी ने खोल दी थी अपने आंख की पट्टी
धृतराष्ट्र के जन्मांध होने के कारण ही विवाहोपरांत गांधारी ने आजीवन अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखने की प्रतिज्ञा ली थी, लेकिन महाभारत युद्ध के दौरान अपने बेटे दुर्योधन को बचाने के लिए गांधारी ने भी अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी थी.
दरअसल गांधारी की दृष्टि को शिव जी का वरदान था कि वो जिसे भी वह अपनी नग्न आंखों से देखेंगी वह लौहे के सामान मजबूत हो जाएगा और यदि वो किसी मनुष्य को देख लेंगी तो जितने भी हिस्से में उनकी दृष्टि पड़ेगी वह अमृत्व को प्राप्त करेगा. भीम ने जब दुर्योधन की जांघ तोड़ने का प्रण लिया था और इस कारण गांधारी ने दुर्योधन को अपने कक्ष में पूरी तरह से नग्न होकर आने के लिए कहा था, लेकिन कृष्ण की एक चाल से गांधारी का ये सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि गांधारी ने जब अपनी आंख की पट्टी खोलीतो दर्योधन अंगवस्त्र पहने हुए था, जिससे उसकी जांघ को अमरत्व नहीं मिला सका और गांधारी के प्रण भी टूट गए.
युधिष्ठिर ने बोला था अधूरा झूठ
युधिष्ठिर धर्मराज माने गए थे, लेकिन एक आधे झूठ से उनके धर्मराज के चरित्र पर भी छींटे पड़ गए थे. महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए भी एक साजिश रची गई थी. गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम अश्वस्थामा था और युद्ध में शामिल एक हाथी का नाम भी अश्वस्थामा था. युद्ध में हाथी अश्वस्थामा के मरने पर द्रोणाचार्य को ये सूचना दी गई की उनका पुत्र अश्वस्थामा मारा गया. द्रोणाचार्य को इस बात पर यकीन नहीं हुआ और यकीन के लिए उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर से आश्वस्त किया. तब युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि, 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी. लेकिन हाथी बोलते समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर दिया, जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य 'हाथी' शब्द नहीं सुन पाए. आचार्य द्रोण शोक में डूब गए और उन्होंने शस्त्र त्याग दिए. तभी द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट दिया. युधिष्ठर का ये कथन ही झूठ माना गया.
कुंती नहीं छुपा सकीं थी ये राज
कर्ण का जन्म यदुवंशी राजा शूरसेन की पुत्री कुन्ती से हुआ. कर्ण के जन्म के समय कुन्ती कुंवारी थीं और तब उनका किसी पुरुष से कोई संबंध भी नहीं था. कर्ण कुंती को एक वरदान के कारण प्राप्त हुए, जब उन्होंने सूर्यदेव की शक्ति की परीक्षा ली थी. बिन विवाह पुत्र होने पर उन्होंने अपने पुत्र को नदी में प्रवाहित कर दिया था और जीवन पर्यंत इस राज को छुपाए रखने का प्रण लिया था लेकिन अर्जुन को युद्ध में बचाने के लिए कुंती ने कर्ण को ये राज बताकर अपना प्रण तोड़ दिया था.
कृष्ण ने उठा लिया था हथियार
महाभारत युद्ध में जब भीष्म बाणों की बौछार करते आगे बढ़ रहे थे लेकिन अर्जुन पितामह पर जवाबी हमला नहीं कर रहे थे. ऐसे में कृष्ण अर्जुन को हथियार चलाने को बोल रहे थे. इसके बाद भी जब अर्जुन ने अस्त्र नहीं उठाए तो कृष्ण ने रथ का पहिया उठा लिया था और इस तरह से महाभारत युद्ध में हथियार न उठाने का ये प्रण भी भगवान का टूट गया था.
भीम के इस छल से टूटी प्रतिज्ञा
गदा युद्ध में नियमों के विपरीत भीम ने दुर्योधन पर जांघ के पर हमला किया था.गदा युद्ध में शरीर के निचले भाग पर हमला नहीं किया जा सकता है. लेकिन दुर्योधन की मौत जांघ के ऊपर वार करने से ही हो सकती थी और इसी कारण भीम ने युद्ध नियम के विपरीत गदा वार कर अपने नियमों के पालन का प्रण तोड़ दिया था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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