भस्म की धूनी में सने कौन होते हैं ये Naga Sadhu, जो अलग पूजा शैली और युद्धकला में होते हैं माहिर

Written By नितिन शर्मा | Updated: Feb 28, 2024, 11:18 AM IST

नागा साधु और साध्वियां दोनों ही होते हैं, लेकिन दोनों में कुछ अंतर होता है. क्या आपका मन भी (Naga Sadhu) की दुनिया में झांकने का होता है? पढ़िए हमारी नई सीरीज Naga Sadhu की रहस्यमयी दुनिया.

Naga Sadhu आपको हमेशा नहीं दिखते. ये कुंभ (Kumbh) और महाकुंभ (Maha Kumbh) के दौरान बड़ी संख्या में नजर आते हैं. महाकुंभ के विशेष दिनों पर स्नान के बाद फिर वे सांसारिक दुनिया से दूर अपने अखाड़ों में और गुप्त स्थान पर चले जाते हैं. इतना ही नहीं, कुंभ में इनका शाही स्नान (Sahi Snan) अन्य संत समाज से अलग होता है. स्नान के दौरान उनके आगे कोई नहीं आता है. इसकी वजह नागा साधुओं का गुस्सा है.

कई अखाड़ों से जुड़े ये नागा युद्धकला (Naga Yudhkala) में माहिर और आम साधु-संतों से अलग क्यों होते हैं? अगर आप इन सवालों के अलावा भी नागा साधुओं और साध्वियों के बारे में जानना चाहते हैं तो "नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया' में आपका स्वागत है. पहली कड़ी में चलिए आपको ये बताएं कि ये नागा कौन हैं और इनकी उत्पति कैसे हुई. कौन हैं इनके आराध्य देव और ये तेवर से भरे क्यों होते हैं?

कैसे दिखते हैं नागा

शरीर में भस्म लपेटे, युद्ध कला का प्रदर्शन करते नागा साधुओं (Naga Sadhu) को आपने कुंभ में जरूर देखा होगा. ये कुंभ के मेले में ही दिखाई देते हैं. इनका स्नान कुंभ में सबसे पहला होता है और ये जब निकलते हैं तो आम लोगों की एंट्री बंद कर दी जाती है.

ये वही नागा हैं जो धूनी रमाकर घंटों योग और तप करते हैं. हिंदु धर्म के रक्षक और योद्धा भी होते हैं.'नागा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ 'पहाड़ी' या 'नागा संन्यासी' (Naga Sanyasi) है. 

नागा साधुओं की कैसे हुई उत्पत्ति

दरअसल, 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म (Sanatan Dharm) की स्थापना के लिए देश के चारों कोनों पर चार पीठों का निर्माण किया था. इनमें पहला गोवर्धन पीठ, दूसरा शारदा पीठ, तीसरा द्वारिका पीठ और चौथा ज्योतिर्मठ पीठ है. मठ मंदिरों और धर्म की रक्षा के लिए आदिगुरु ने सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरुआत की. इन्हीं अखाड़ों में नागा साधुओं की उत्पत्ति हुई और उन्हें धर्म की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई. यही वजह है कि इन्हें धर्म रक्षक (Dharm Rakshak) या नागा कहा जाता था.


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Naga के अराध्य हैं Shiva

जानकारों की मानें तो भारत में नागा साधुओं की परंपरा प्रागैतिहासिक काल (Pre Historic Period) से शुरू हुई थी. इस बात का प्रमाण मोहनजोदाड़ो की खुदाई में मिली मुद्रा ओश्र पशुओं द्वारा पूजित एंव दिगंबर रूप में विराजमान प्रतिमा से मिलता है. वैदिक साहित्य में भी जटाधारी तपस्वियों का वर्णन मिलता है. नागा साधुओं (Naga Sadhu Worship Lord Shiva) के आराध्य भगवान शिव होते हैं. यह भगवान शिव के सभी रूपों की पूजा करते हैं. अग्नि के सामने धुनि रमाकर घंटों तप करते हैं.  

तेवर से होती है नागा साधुओं की पहचान

नागा साधुओं की पहचान उनके तेवर से होती है. यह बेहद गुस्सैल होते हैं. कपड़ों की जगह शरीर पर भस्म लपेटे हाथ में त्रिशूल (Bhagwan Trishul) के शस्त्र लेकर चलते हैं.


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बहुत कठिन होती है दिनचर्या

नागा साधु की दिनचर्या बेहद कठिन होती है. यह सैन्य पंथ पर रहते हैं. सुबह 4 बजे उठकर अपने दैनिक कार्यों को खत्म कर योग करते हैं. इसके साथ ही खानपान में संयम रखते हैं. नागा साधु एक अलग अलग स्थानों पर बंटकर रहते हैं. नागा साधु त्रिशूल, तलवार चलाने में पारांगत होते हैं. यह शंख और चिलम लेकर चलते हैं. 

 Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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