कौन था पहला 'अघोरी', जानिए अघोरी पंथ की तिलस्मी दुनिया का सच

ऋतु सिंह | Updated:Feb 21, 2024, 01:10 PM IST

Magical world of Aghori sect: Part 1

रहस्यमी और डरावने से दिखने वाले अघोरियों को लेकर ये आम धारणा है कि ये शवों के बीच रहते हैं और उन्हें खाते भी हैं, तो क्या ये सच है या अघोरी समाज को लेकर एक धारणा. अघोरियों के पर्दे के पीछे का सच क्या है और इनकी दुनिया में क्या-क्या होता है, कई कहानियों के जरिये बताएंगे.

कुंभ के मेले में या फिर श्मशान घाटों के आस-पास अकसर आपने नग्न या फिर काला चोंगा पहने, राख से लिपटे, जटाधारी बालों और गले में हड्डियों की माला पहने साधुओं को देखा होगा. तंत्र मंत्र के ज्ञानी ये विशेष साधु को अघोरी कहते हैं. शायद इस वेश-भूषा वाले साधु हालांकि दीन दुनिया से अलग थलग (Aghori Real Story) श्मशान घाट पर ही देखे जाते हैं.

लेकिन जब भी वो श्मशान से बाहर निकलते हैं तो वह काला चोंगा (विशेष तरह की ड्रेस) पहनकर ही निकलते हैं.  इन्हें देखकर अक्सर लोग डर भी जाते हैं, क्योंकि किवंदतियों में कहा गया है कि ये श्मशान आने वाले शवों के आस पास न केवल पूजा (Facts About Aghoris) करते हैं बल्कि अधजले शवों को खाते भी हैं. तंत्र साधना से ये अघोरी किसी को भी नष्ट कर सकते हैं. ये सुनी-सुनाई बातें, कितनी सच हैं और कितनी झूठी, इसे तह में जाकर ही जाना जा सकता है.


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उम्मीद है कि 'अघोर पंथ की तिलस्मी दुनिया' के नाम से डीएनए हिंदी पर शुरू हो रही इस सीरीज से अघोरियों  के पंथ और इनकी तिलिस्मी दुनिया को जान सकेंगे. क्योंकि हम अघोर पंथ का सच आपके सामने ला रहे हैं.

अघोरी पंथ की तिलिस्मी दुनिया का सचः की पहली कड़ी में हम बताने जा रहे हैं कि सबसे पहला अघोरी कौन था और इस अघोर पंथ का उद्देश्य क्या है और इस पंथ को पहचान देने वाले बाबा कौन थे. इससे पहले  आइए ये जान लें कि आखिर ये अघोरी होते कौन है?

शिव भक्त होते हैं अघोरी

असल में अघोरी शिव के भक्त (Aghori are devotees of Shiva) होते हैं जो भैरव का रूप माने जाते हैं. अघोरी अद्वैतवादी (Monist) माने जाते हैं जो पुनर्जन्म  (Rebirth) के चक्र से मुक्ति यानी मोक्ष (salvation)चाहने वाले होते हैं. एक अघोरी अंधकार से प्रकाश और फिर आत्म-बोध (Self-Realization) में विश्वास करते हैं. वहीं, अवधूत भगवान दत्तात्रेय (Avadhoot Lord Dattatreya) को भी अघोरशास्त्र (Guru of Aghorshastra) का गुरु माना जाता है.


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अघोरियों का मानना ​​है कि प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा शिव (Soul is Shiva) है. वह अष्टमहापाश यानी आठ  बंधनों जैसे- काम वासना, क्रोध, लालच, नशा, भय और घृणा से परे अपना जीवन जीते हैं. 

कौन थे अघोर पंथ के प्रणेता (Who was the founder of Aghor sect?)

अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था. अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है. 

बाबा कीनाराम थे सबसे पहले अघोरी (Baba Keenaram was the first Aghori)

अघोर परंपरा को आगे बढ़ाने वाले सबसे पहले अघोरी थे- बाबा कीनाराम. कुछ स्रोतों के अनुसार उन्हें शैव धर्म के अघोरी संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है. उन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता था. अघोरी अपनी उत्पत्ति बाबा कीनाराम से मानते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद चन्दौली (Chandauli) के सकलडीहा (Sakaldiha) तहसील अंतर्गत रामगढ़ (Ramgarh) गांव में एक क्षत्रिय परिवार में 1658 में भाद्रपद के कृष्णपक्ष में अघोर चतुर्दशी के दिन हुआ था.वे 150 वर्ष जीवित रहे थे. अघोराचार्य बाबा कीनाराम ने 21 सितंबर, 1771 में समाधि ली थी. अघोरा परंपरा के केंद्र के रूप में माना जाने वाला, बाबा कीनाराम स्थल, क्रिंग-कुंड, वाराणसी में सबसे प्राचीन आश्रम है.

 न रोए न 3 दिन तक दूध ही पिया 

मान्यता है कि अपने जन्म के 3 दिन तक बाबा कीनाराम न तो रोए थे न मां का दूध पिया था. उनके जन्म के चौथे दिन 3 भिक्षु (भगवान सदाशिव के विश्वासी: ब्रह्मा, विष्णु और महेश) उनके पास आए और बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. जैसे ही उन्होंने बच्चे के कान में कुछ फुसफुसाया, आश्चर्यजनक रूप से वह रोने लगे. उस दिन से, कीनाराम बाबा के संस्कार के रूप में उनके जन्म के पांचवें दिन हिंदू धर्म में लोलार्क षष्ठी उत्सव मनाया जाता है.


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बाबा कीनाराम ने सामाजिक कल्याण और मानवता के लिए अपनी धार्मिक यात्रा बलूचिस्तान (जिसे पाकिस्तान के नाम से जाना जाता है) के ल्यारी जिले में हिंगलाज माता (अघोरा की देवी) के आशीर्वाद से शुरू की थी. वह अपने आध्यात्मिक गुरु बाबा कालूराम के शिष्य थे, जिन्होंने उनके भीतर अघोर के बारे में जागरूकता पैदा की थी.

इसके बाद, बाबा किनाराम ने लोगों की सेवा करने और उन्हें अघोरियों के उद्देश्य से अवगत कराने के लिए भगवान शिव की नगरी वाराणसी में खुद को स्थापित किया. उन्होंने रामगीता, विवेकसार, रामरसाल और उन्मुनिराम नामक अपनी रचनाओं में अघोर के सिद्धांतों की घोषणा की थी. विवेकसार को अघोर के सिद्धांतों पर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है. 

पृथ्वी के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने की प्राप्त थी सिद्धि (baba kinaram birth)

बाबा कीनाराम से जुड़ा एक कथानक यह भी प्रसिद्ध है कि उन्हें खड़ाऊ पहन कर चलते हुए पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने की सिद्धि प्राप्त थी.

अघोरी किसमें विश्वास करते हैं? (What do Aghori believe in)

वे श्मशान में निवास करने वाले देवता शिव की पूजा करते हैं और उनके लिए अनुष्ठान करते हैं. अघोर की परंपराएं इस विश्वास से उपजी हैं कि सब कुछ सुंदर है और देवताओं की रचना है .

अगली कड़ी में हम अघोरियों के शव से यौन संबंध बनाने से लेकर जानलेवा असाध्य रोगों को खत्म करने के दावे की कहानी के बारे में बताएंगे. साथ ही इस कड़ी में अघोरियों के उन  चमत्कारों के बारे में भी बताएंगे जिसे पढ़कर आप दांतो दले उंगली दबा लेंगे.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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