मृत्यु इस जीवन का सबसे बड़ा सत्य है. इस सत्य को नहीं मानना इस जीवन का सबसे बड़ा भ्रम. इसी भ्रम के चलते मृत्यु से जुड़ी कई भ्रांतिया हमारे मन में रहती हैं और मृत्यु के प्रति हमारी अज्ञानता का फायदा उठाकर लोग हमे मूर्ख बनाते हैं. हमें यह तो मालूम रहता है कि जन्म के बाद क्या-क्या किया जाता है. लेकिन मृत्यु के बाद होने वाली रीति रिवाजों से हम दूर रहते हैं. ऐसे में किसी प्रियजन की मृत्यु के बाद हमारे मन में कई सवाल उठते हैं. पंचक, संस्कार, अंत्येष्टि, शव का स्नान - ऐसे कई कारक हैं जो हमारे मन को उलझा देते हैं और मन में पहले वहम होता है और फिर डर बैठ जाता है.
ऐसा ही एक डर बैठता है शव को अकेला छोड़े जाने पर. ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के बाद कभी भी शव को अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए. सूर्यास्त के बाद हिन्दू मान्यता में अंतिम संस्कार नहीं किया जाता. ऐसे में शव को वहीं रखा जाता है, जहां मृतक का निवास स्थान था. इस पूरी अवधि में शव को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा जा सकता. इसको कई लोग अंधविश्वास मानते हैं लेकिन गरुड़ पुराण (Garuda Purana) के अनुसार इसके कुछ कारण बताए गए हैं -
शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ते?
मृत्यु के बाद 13 दिनों तक मृतक की आत्मा अपने शव के आसपास घूमती रहती है. वह अपने परिजनों, अपने घर, अपने लोक का मोह नहीं छोड़ पाती. ऐसे में शव के आसपास बैठे परिजनों को देख आत्मा को शांति मिलती है और उसे यह एहसास होता है कि वो इस लोक में अकेला नहीं है.
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पुराने समय में, शव के उपर जंगली जानवरों का आक्रमण हो जाता था. आज भी शव के अकेला होने की स्थिति में कोई कुत्ता या बिल्ली इसे नोच सकता है. गरूड़ पुराण में लिखा है कि अगर किसी शव के साथ ऐसा होता है तो यमलोक की यात्रा के दौरान उसकी आत्मा को भी ऐसा ही कष्ट भुगतना पड़ सकता है.
गरूड़ पुराण के अनुसार, रात्रि के समय किसी शव के अंदर कोई अन्य दुरात्मा प्रवेश कर सकती है. इस स्थिति में न केवल मृतक को अपितु उसके परिवार जनों को भी भारी कष्टों का सामना करना पड़ा सकता है. किसी परिजन के शव के नज़दीक रहने पर मृतक की आत्मा बलवान रहती है और अन्य किसी आत्मा को अपने शव में प्रवेश नहीं करने देती.
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कोई कीड़ा शव में प्रवेश नहीं करता
शव की गंध को रोकने के लिए भी शव को अकेले नहीं छोड़ा जाता है. मृत्यु के अगले क्षण ही शरीर का क्षरण होने लगता है. ऐसे में किसी व्यक्ति के पास होने पर शव के नज़दीक लगातार फूल, धूप दीप का निस्तारण होता रहता है और कोई कीड़ा इत्यादि शव में प्रवेश नहीं करता.
गरूड़ पुराण में मृत्यु से संबंधित ऐसी कई मान्यताएं और रीतियां है जिनका पालन सभी लोगों को करना चाहिए. मृत्यु के भय से बड़ा इससे जुड़ा भ्रम है. किसी प्रियजन का जाना जितना आहत करता है, उनकी किसी क्रिया का छूट जाना उससे अधिक परेशान करता है. ऐसे में डीएनए धर्मा की ये तथ्यपरक जानकारी आपको भ्रमित नहीं होने देगी और आपके मन को संतुलित रखेगी.
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