Leap Year: हर 4 साल बाद ही क्यों आता लीप ईयर, जानें फरवरी में क्यों जोड़ी जाती है 29 तारीख

Written By नितिन शर्मा | Updated: Feb 28, 2024, 03:01 PM IST

फरवरी माह में 28 दिन होते हैं, लेकिन हर चार साल बाद 29 हो जाते हैं. इसे लीप ईयर कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते है कि लीप ईयर 4 साल बाद ही क्यों आता है. इसमें 1 दिन बढ़ाकर फरवरी में ही क्यों जोड़ा जाता है.

Leap Year English Calender : अंग्रेजी कैलेंडर में तारीखों की गणना सूर्य के आधार पर की जाती है. इस कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर भी कहा जाता है, जिसमें जनवरी 31 दिनों की होती है. इसके अनुसार साल में 365 दिन होते हैं, लेकिन हर चार वर्ष बाद साल का एक दिन बढ़ जाता है, इसमें 365 की जगह 366 दिन हो जाते हैं. इसी को लीप ईयर कहा जाता है. हर 4 साल में बढ़ने वाले इस एक दिन को फरवरी के महीने में जोड़ा जाता है और हर चार साल बाद फरवरी का महीना, 28 दिनों की बजाय 29 दिनों का हो जाता है. आइए जानते हैं  हर 4 साल में लीप ईयर आने की वजह... 

इसलिए 4 साल में आता है एक बार आता है लीप ईयर

दरअसल, पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती रहती है. पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन और करीब 6 घंटे का समय लगता है. तब जाकर एक साल पूर्ण होता है और दूसरे साल की शुरुआत हो जाती है. इसी तरह हर साल 365 दिनों के साथ ही 6 6 घंटे जुड़कर 4 साल में 24 घंटे का पूरा एक दिन बन जाता है. 4 साल बाद आने वाले साल में 366 दिन हो जाते हैं और इसे लीप ईयर कहते हैं, जिसके चलते फरवरी 28 की जगह 29 दिन की हो जाती है. 

जानें फरवरी में ही क्यों जोड़ा गया एक्सट्रा दिन

साल के लीप ईयर (Leap Year 2024) का यह दिन फरवरी माह में ही क्यों जोड़ा गया है. इस सवाल का जवाब भी ज्यादातर लोग तलाशते रहते हैं. इसकी वजह ये है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar 2024) से पहले जूलियन कैलेंडर चलन में था. ये रोमन सौर कैलेंडर था. इसमें लीप मार्च का पहला और फरवरी आखिरी महीना था. इसी कैलेंडर में लीप ईयर की व्यवस्था की गई थी. यही वजह है कि लीप ईयर (Leap Year) यानी चार साल बाद पड़ने वाले एक्सट्रा दिन को फरवरी में जोड़ दिया गया था, जब जूलियन कैलेंडर की जगह ग्रेगोरियन कैलेंडर आया तो पहला महीना जनवरी हो गया, लेकिन फिर भी एक्‍सट्रा दिन को फरवरी में ही जोड़ा गया. इसकी वजह फरवरी का महीना सबसे छोटा होना भी है. 

 Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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