Holi 2024: रंग और गुलाल से ही क्यों खेली जाती है होली, श्री कृष्ण से जुड़ी है इसकी कहानी और परंपरा

नितिन शर्मा | Updated:Mar 25, 2024, 10:56 AM IST

रंगों का त्योहार कहा जाने वाला होली का पर्व (Holi Festival 2024) सिर्फ भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर गले मिलते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंग से ही होली क्यों खेलते हैं. इसकी वजह और परंपरा श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) से जुड़ी है.

Holi Colors Story In Hindi: फाल्गुन का महीना शुरू होते ही देश के कई क्षेत्रों में होली का त्योहार (Holi Festival) शुरू हो जाता है. लोग इस त्योहार का साल भर इंतजार करते हैं. होली का यह पर्व प्रेम का प्रतीक माना जाता है. रंगों के त्योहार होली के एक दिन पहले होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है. इसमें विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती हे. फिर अगले दिन होली पर एक दूसरे को रंग लगाकर गले मिलकर बधाई दी जाती है, लेकिन कभी आप ने कभी सोचा है कि होली का त्योहार रंगों से ही क्यों खेला जाता है. इस दिन रंग लगाने के साथ गले क्यों मिलते हैं. आइए जानते हैं इसके पीछे वजह और रंगों से होली खेलने की परंपरा...


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भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है रंगों से खेलने की प्रथा

रंगों का त्योहार होली भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) से जुड़ा हुआ है. यह प्रेम का प्रतीक है. इस त्योहार को देश भर में मनाया जाता है, लेकिन ब्रज यानी श्री कृष्ण की नगरी कहे जाने वाले मथुरा वृंदावन में 42 दिन पहले ही होली का त्योहार शुरू हो जाता है. यहां होली खेलने और देखने के लिए देशभर से लोग आते हैं. रंग और गुलाल से होली खेली जाती है. इन दोनों को ही जुड़ाव श्री कृष्ण से (Shri Krishna) होना है. द्वापर युग से ही होली का त्योहार मनाया जाता है. कहा जाता है कि रंग माहौल में प्यार घोल देते हैं. इसी वजह से होली के त्योहार की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण को रंग लगाकर की जाती है.

भगवान श्री कृष्ण ने की थी इस त्योहार की शुरुआत

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण अपने रंग को लेकर खासा नाराज रहते थे. वह अपनी मां यशोदा से कहते थे कि राधा गोरी क्यों है और मैं काला क्यों हूं. मां यशोदा श्री कृष्ण के इस सवाल को हंसकर टाल देती थी. एक दिन श्री कृष्ण ने मां यशोदा से कहा कि मुझे बताइये कि राधा गोरी क्यों हैं. उसका रंग मेरी तरह क्यों नहीं है. तब यशोदा जी ने सुझाव दिया कि जाकर राधा के चेहरे पर रंग लगा दो तो उनका रंग भी तुम्हारे जैसा हो जाएगा. मां की यह बात सुनकर श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ बरसाना पहुंच गये. यहां श्रीकृष्ण ने राधा जी को रंग लगा दिया. इसे हंसी मजाक हुआ और दोनों के बीच प्रेम उमड़ पड़ा. 


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ब्रज के लोगों ने भी लगाया रंग और शुरू हो गई होली की परंपरा

द्वापर युग में कान्हा जी द्वारा राधा को रंग लगाकर मौज मस्ती करते देख हंसी खुशी का माहौल बन गया. यहां श्री कृष्ण के मित्रों समेत ब्रज वासियों ने एक दूसरे को रंग लगाना शुरू कर दिया. इसके बाद होली खेलने की यह परंपरा सबसे पहले बरसाना से लेकर मथुरा और वृंदावन में शुरू हुई. इसके के बाद से यह त्योहार के रूप में रंग वाली होली का त्योहार मनाया जाने लगा. देश ही नहीं, दुनिया के कई देशों में होली का त्योहार मनाया जाता है. हालांकि इसके नाम अलग हैं, लेकिन मथुरा वृंदावन में सबसे स्पेशल होली खोली जाती है. यहां लट्ठमार होली से लेकर फूल, रंग और लड्डू मारकर भी होली खेली जाती है. 

 Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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