डीएनए हिंदी: भारत के ओलंपिक पदक विजेता पहलवान बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री सम्मान केंद्र सरकार को लौटा दिया है. बजरंग ने यह कदम संजय सिंह को भारतीय कुश्ती संघ (WFI) का नया अध्यक्ष चुने जाने के विरोध में उठाया है. बजरंग ने पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखा, जिसमें उन्होंने अपने आहत होने और इसके विरोध में अपना पद्मश्री अवॉर्ड लौटाने की बात लिखी. यह लेटर उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करते हुए सभी को इसकी जानकारी दी. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर पहुंचकर उसके बाहर फुटपाथ पर अपना पद्मश्री सम्मन रखा और वहां से वापस चले गए हैं. उनके सम्मान लौटाने का वीडियो भी सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर बेहद वायरल हो रहा है. हालांकि DNA निजीतौर पर इस वीडियो की पुष्टि नहीं कर रहा है.
दरअसल भारतीय महिला और पुरुष पहलवान काफी लंबे समय से WFI के पूर्व चीफ और भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. पहलवानों ने ब्रजभूषण पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप लगाए थे. इसके बाद कुश्ती संघ के चुनाव आयोजित किए गए थे, जिनमें गुरुवार को संजय सिंह अध्यक्ष पद पर चुने गए हैं. संजय सिंह को ब्रजभूषण का दायां हाथ माना जाता है. ऐसे में उनके चयन को लेकर यह कहा जा रहा है कि अपरोक्ष रूप से अब भी अध्यक्ष पद पर ब्रजभूषण का ही कब्जा है. इसके चलते गुरुवार को ही ओलंपिक पदक विजेता महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से रिटायरमेंट की घोषणा कर दी थी और अब बजरंग ने ये कदम उठाया है.
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यह लिखा था बजरंग पुनिया ने पीएम मोदी को पत्र में
बजरंग पूनिया ने सोशल मीडिया पर प्रधामंत्री को अपना पद्मश्री अवॉर्ड लौटाने के लिए पत्र लिखा है, जिसका फोटो उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है. उस पत्र में उन्होंने लिखा, "माननीय प्रधानमंत्री जी, उम्मीद है कि आप स्वस्थ होंगे। आप देश की सेवा में व्यस्त होंगे। आपकी इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं. आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण सिंह पर सेक्सुएल हरासमैंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया था. आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही.
उन्होंने आगे लिखा कि " इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया. हम सभी की रात रोते हुए निकली. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जीएं. इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने. क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूँ. साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया. खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ. लगा था कि जीवन सफल हो गया. लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं. कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है.
उन्होंने और आगे कहा, "लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं, उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुंची होगी. जिन बेटियों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड अंबेसडर बनना था उनको इस हाल में पहुंचा दिया गया कि उनको अपने खेल से ही पीछे हटना पड़ा. हम "सम्मानित" पहलवान कुछ नहीं कर सके. महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं "सम्मानित" बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाउंगा. ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे. इसलिए ये "सम्मान" मैं आपको लौटा रहा हूं."
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