डीएनए हिंदी: साल 2012 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand Birth Anniversary) की जंयती 29 अगस्त को हर साल नेशनल स्पोर्ट्स डे के तौर पर मनाया जाएगा. हॉकी के जादूगर के करिश्माई गोल और हिटलर के प्रस्ताव के बारे में लगभग सब लोग जानते हैं. हालांकि उनकी जिंदगी के कई ऐसे पहलू भी हैं जिसकी कम चर्चा होती है. आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के ऐसे ही 10 अनजाने तथ्य.
1) खेल के लिए मेजर ध्यानचंद का जुनून ऐसा था कि वह रोज देर रात तक चांद की रोशनी में इलाहाबाद ग्राउंड पर प्रैक्टिस करते थे. उन दिनों बिजली की सुविधा आज की तरह नहीं थी इसलिए वह चांद की रोशनी में खेलते थे. इसी जोश को देखकर उनके साथियों ने उन्हें चांद कहना शुरू कर दिया था.
2) हॉकी के जादूगर मूल रूप से मौजूदा बुंदेलखंड के रहने वाले थे. बुंदेलखंड के इलाके में आज भी हर कोई उन्हें प्यार से दद्दा कहकर पुकारता है.
3) 1932 ओलंपिक में भारत को गोल्ड जिताने में मेजर ध्यानचंद के साथ उनके छोटे भाई का भी बड़ा योगदान था. उनके छोटे भाई रूप सिंह को भी हॉकी के महान खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है.
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4) महान हॉकी खिलाड़ी के फैन यूं तो दुनिया भर में लोग थे लेकिन ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज क्रिकेटर सर डॉन ब्रैडमैन भी उनके बहुत बड़े प्रशंसक थे. 1935 में एडिलेड में ध्यानचंद से मुलाकात क बाद उन्होंने कहा था कि वह तो क्रिकेट में बल्लेबाज की तरह फटाफट रन बनाते हैं.
5) आज के दौड़ में खिलाड़ियों के फिटनेस की काफी चर्चा होती है लेकिन दशकों पहले मेजर ध्यानचंद की फिटनेस जबरदस्त होगी. उन्होंने 22 साल के अंतर्राष्ट्रीय करियर में 400 से अधिक गोल दागे थे. अगर इसमें घरेलू टूर्नामेंट को भी जोड़ लिया जाए तो उनके गोलों की संख्या 1,000 से ऊपर थी.
6) हॉकी हो या सेना में मिली जिम्मेदारी उन्होंने अपनी हर भूमिका का बखूबी निर्वाह किया था. 1922 में बतौर सैनिक सेना में भर्ती हुए थे और प्रमोशन पाकर मेजर के पद पर पहुंचे थे.
7) 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में 14 गोल करने के बाद यूरोपियन अखबारों ने उन्हें हॉकी के जादूगर का उपनाम दिया था जो बाद में काफी चर्चित हुआ था.
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8) भारत में मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल का सर्वोच्च सम्मान है और उनकी जयंती को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी नवाजा गया है.
9) मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियों को देखकर दुनिया के कई स्टेडियम और खेल यूनिवर्सिटी में उनके नाम के स्टैंड, स्टैचू वगैरह बनाए गए हैं. विएना के एक स्पोर्ट्स क्लब में ध्यानचंद के चार हाथों वाली मूर्ति लगी है. चारों हाथों में उन्हें स्टिक पकड़े दिखाया गया है. यह हॉकी के लिए उनके जुनून को बताने के लिए है.
10) 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और तीनों ही बार भारतीय टीम गोल्ड जीतने में कामयाब हुई थी. हॉकी में उनकी प्रतिभा को देखकर हिटलर ने उन्हें जर्मनी से खेलने का ऑफर दिया था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था.
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