डीएनए हिंदी: 24 अगस्त से 03 सितंबर तक चले वर्ल्ड पैरा आर्म रेसलिंग चैंपियनशिप (World Para Arm Wrestling Championship) में श्रीमंत झा (Shrimant Jha) ने भारत को कांस्य पदक (Bronze Medal) दिलाया. कजाकिस्तान में आयोजित हुए इस टूर्नामेंट में छत्तीसगढ़ के लाल ने तमाम चुनौतियों से मुकाबला कर देश को गर्व करने का मौका दे दिया. लेकिन अब यही खिलाड़ी भारत लौटने के बाद उचित सम्मान और पहचान नहीं मिलने से काफी दुखी है. कर्ज में डूबे परिवार को चलाना श्रीमंत के लिए काफी मुश्किल हो रही है. अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीत कर आने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि राज्य सरकार से मदद मिलेगी. लेकिन सरकार की ओर से एक सोशल मीडिया पोस्ट के अलावा इस एथलिट के हाथों कुछ नहीं लगा.
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डीएनए हिंदी से बात करते हुए श्रीमंत ने कहा, "मेडल जीतकर लौटने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलने का बहुत प्रयास किए लेकिन कोई जुगाड़ नहीं लग पा रहा. इतने लंबे से खेलने के बाद बहुत ज्यादा झुकना भी अब मुझे सही नहीं लग रहा. मैंने सोचा था कि इंटरनेशन मेडल जीतकर आए हैं, जाएंगे एक बार मिलेंगे. बोलेंगे कि सर कोई स्पोर्ट्स कोटा से जॉब मिल जाती तो... लेकिन मैं अपनी बात उन तक नहीं पहुंचा पा रहा हूं."
आर्थिक तंगी के कारण एटीएम गार्ड की नौकरी करना चाहते थे श्रीमंत
उन्होंने आगे कहा, "पढ़ते- पढ़ते एक समय मेरे दिमाग में ऐसा आया था कि मैं एटीएम के बाहर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी ढूंढने लगा था, जिससे मैं अपना परिवार चला पाऊं. लेकिन पापा ने हिम्मत दी और अच्छा हुआ कि उन्होंने दसवीं के बाद डिप्लोमा करा दिया जिससे मुझे 19 साल के ही उम्र में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई थी."
शारीरिक विकलांगता के कारण स्कूल में दोस्त बनाने लगे थे दूरी
श्रीमंत का बचपन से ही एक हाथ उनके दूसरे हाथ के मुकाबले कमजोर था. वह सामान्य बच्चों की तरह नहीं थे. शुरू में उन्हें स्कूल में कुछ असहज महसूस नहीं होता था. लेकिन जब वह बड़े होने लगे तो देखे कि लोग उनसे दूर होते जा रहे हैं. इस समय श्रीमंत को आभास हुआ कि विकलांगता के कारण उनके दोस्त कम होते जा रहे हैं. इस बात को स्वीकार कर वह अकेले ही रहना पसंद करने लगे.
जिम से शुरू हुआ आर्म रेसलिंग में करियर
पर्सनालिटी बेहतर बनाने के लिए श्रीमंत ने जिम ज्वाइन किया. वहां उन्हें किसी से आर्म रेसलिंग के बारे में पता चला और उन्होंने स्टेट चैंपियनशिप में भाग लिया, जिसमें गोल्ड मेल जीतकर लौटे. यहां से वह नेशनल क्वालिफाई कर गए. फिर जो कारवां शुरू हुआ वह बदस्तुर जारी है. श्रीमंत अपने करियर में अब तक 42 मेडल जीत चुके हैं.
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