DNA Positive News: बिना हाथ के निशाना साधने वाली 'एकलव्य', जिद और जुनून की मिसाल है पैरातीरंदाज शीतल देवी

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 29, 2023, 10:45 PM IST

Para Archer Sheetal Devi (File Photo)

Who is Sheetal Devi: शीतल देवी जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ की पैरा तीरंदाज है, जिसने हाथ नहीं होने के बावजूद धनुष पर ऐसी महारत हासिल की है, जो आपको हैरान कर सकती है.

डीएनए हिंदी: Jammu and Kashmir News- दिव्यांग होना एक अभिशाप की तरह माना जाता है. ऐसे में हाथ नहीं होना तो जिंदगी की हर राह खत्म होने जैसा कहा जा सकता है. लेकिन इंसानी दो तरह की जिद अपने मन में रखता है. पहली जिद, जो उस इंसान को बर्बाद कर सकती है. दूसरी जिद, उस इंसान को हर तरह की चुनौती का मुकाबला करने के लिए तैयार करती है. जिस इंसान में यह दूसरी जिद होती है, वो शारीरिक अपंगता को भी मात दे सकता है. दूसरे किस्म के जिद्दी लोग हर कठिनाई से लड़ कर, अपने लिए रास्ता तैयार करते हैं. ऐसी ही जिद्दी है, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के लोही धार गांव की रहे वाली शीतल देवी, जिसने दोनों हाथ गंवाने के बावजूद खुद को धनुष-बाण की 'एकलव्य' साबित किया और तीरंदाजी में ऐसी महारत हासिल की है कि आज उसका नाम हर कोई जान रहा है.

16 साल की उम्र में कमा लिया बड़ा नाम

बचपन से ही शीतल केदोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन फिर भी उनका आत्मविश्वास देखते ही बनता है. महज 16 वर्ष की उम्र में शीतल देवी तीरंदाजी में बड़ा नाम कमा चुकी हैं. पैरातीरंदाजी में शीतल देवी पैरों से धनुष पकड़ती हैं, तीर खींचती हैं और तीरंदाजी करती हैं, लेकिन उनका निशाना अचूक है. उनके इस हुनर को देखकर लोग दंग रह जाते हैं, जन्म से ही हाथ ना होने के बावजूद, शीतल वो सब काम करती हैं, जो एक सामान्य बच्चा कर सकता है.

साल 2019 में बदली जिंदगी

शीतल देवी की जिंदगी में बदलाव आया वर्ष 2019 में, जब भारतीय सेना की Rashtriya Rifles ने किश्तवाड़ जिले में एक कैंप लगाया. उस कैंप में सेना ने शीतल के अनूठे हुनर को पहचाना और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. बेंगलूरु की रहने वाली प्रीति वहां से शीतल देवी को श्री Mata Vaishno Devi Shrine Board द्वारा चलाई जा रही Archery Academy में लेकर आईं और यहीं से शीतल ने अपनी जिंदगी को नई शुरुआत दी...

नहीं चूकता है कभी शीतल का निशाना

शीतल देवी पैरों से तीर चलाती हैं, लेकिन उनका निशाना कभी नही चूकता. ये उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का ही नतीजा है कि शीतल आज दुनिया की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज हैं. शीतल का मानना है कि भले ही उनके हाथ नहीं हैं, लेकिन वो कुछ अलग करने के सपने हमेशा से देखती थीं. अगर मन में अटूट विश्वास और जज़्बा हो तो किसी भी मंज़िल को हासिल किया जा सकता है.

शीतल देवी की कहानी बताती है कि सही मार्गदर्शन और जुनून से, इंसान हर चुनौती को मात दे सकता है. चुनौती चाहे जितनी भी कठिन हो, इंसान की जिद के सामने उसे झुकना ही पड़ता है.

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