सिर पर भिनभिनाते थे मच्छर, बारिश में इस मशहूर हॉकी खिलाड़ी का डूब जाता था घर

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 06, 2021, 05:09 PM IST

4 दिसंबर 1994 को रानी रामपाल का जन्म हुआ औऱ 6 साल की छोटी सी उम्र से उन्होंने विपरीत हालातों के बावजूद हॉकी खेलना शुरू कर दिया था. 

डीएनए हिंदीः साल 2021 की अहम घटनाओं या तस्वीरों का जिक्र होगा तो उसमें दो घटनाएं या तस्वीरें जरूर दर्ज होंगी. एक महिला हॉकी टीम का ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचना और दूसरा महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल को पद्मश्री मिलने के साथ ही उनके पिता की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात होना. इन दो घटनाओं की जितनी चर्चा रही  उतनी ही इन दो घटनाओं से जुड़ी तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल हुईं.

6 साल की उम्र से कर दी थी शुरुआत
हॉकी की कहानी फिर कभी. फिलहाल बात करते हैं हॉकी खेलने वाली लड़की रानी रामपाल की. वो लड़की जिसके पिता तांगा चलाते थे. वो लड़की जिसके परिवार में किसी के पास हॉकी खरीदने के पैसे तक नहीं थे. वो लड़की जो हरियाणा के छोटे से कस्बे शाहबाद से आती है. वो लड़की जिसे सपने देखने का मतलब भी नहीं पता था, वो आज सारे सपनों को पूरा कर कई लोगों के लिए मिसाल बन गई है. रानी रामपाल की कहानी किसी के लिए भी प्रेरणादायक हो सकती है. 4 दिसंबर 1994 को रानी रामपाल का जन्म हुआ औऱ 6 साल की छोटी सी उम्र से उन्होंने विपरीत हालातों के बावजूद हॉकी खेलना शुरू कर दिया था. 

भरपेट खाना भी नहीं मिलता था
फास्ट फॉरवर्ड प्लेयर रानी रामपाल की जिंदगी का एक दृश्य ये था कि हर वक्त सिर पर मच्छर भिनभिनाते थे, पूरा दिन बिजली नहीं आती थी, खाने को दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती थी और बारिश होने पर उनका घर पूरा डूब जाया करता था. इस दृश्य से निकलकर खेल की दुनिया में स्वर्णिम इतिहास रचने तक का उनका बीते दो दशक का सफर काबिले गौर भी है और काबिले तारीफ भी. उनके घर के पास एक हॉकी अकेडमी थी. वह घंटों वहां हॉकी खिलाड़ियों को आते-जाते देखतीं. उनके साथ खेलने के अरमान जगते लेकिन अरमानों को पूरा करने का कोई जरिया नहीं था. पिता 80 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमाते थे. वह हॉकी स्टिक नहीं खरीद सकते थे.

कोच ने दिया हर मुश्किल में साथ
इस बारे में अपने एक इंटरव्यू में रानी रामपाल ने बताया था, 'मुझे एक टूटी हुई हॉकी स्टिक मिली और मैंने उसी से प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया. मेरे पास ट्रेनिंग वाले कपड़े भी नहीं थे. मैं सलवार कमीज पहनकर ही प्रैक्टिस करती थी. मेरे पास बेशक कुछ भी नहीं था लेकिन दृढ़ निश्चय हमेशा से था. मैंने कोच से एक मौका देने के लिए बहुत गुजारिश की. वो बहुत मुश्किल से माने. फिर जब अपने परिवार को इस बारे में बताया, तो उन्होंने मेरे हॉकी खेलने को सपोर्ट नहीं किया. बहुत मुश्किल हुई उन्हें मनाने में. इसके बाद मैंने जैसे-तैसे ट्रेनिंग की शुरुआत की. इस सबके बीच मेरे कोच ने मेरा हर मुश्किल में साथ दिया. उन्होंने मेरा खाने-पीने का भी ख्याल रखा. घर पर मुझे पर्याप्त खाना भी नहीं मिल पाता था. ऐसे में कोच ने मुझे अपने घर पर रखा और मेरी डाइट को बेहतर बनाया. '

फिर वो दिन भी आया जब रानी रामपाल ने ना सिर्फ अपने प्रदेश का बल्कि देश का भी नेतृत्व किया. 15 साल की उम्र तक रानी कई मेडल जीत चुकी थीं. अपनी मेहनत की बदौलत ही वह राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की कप्तान भी बन गईं. यही नहीं उन्हें खेल रत्न पुरस्कार भी मिल चुका है. इसके बाद कई उपलब्धियां उनके नाम पर दर्ज हो चुकी हैं और वह लगातार देश के युवाओं को प्रेरित करने का काम कर रही हैं. 


 

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