डीएनए हिंदी: बिहार की राजनीति पिछले 6 महीने में काफी बदल गई है क्योंकि जिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के बीच एक समय टकराव था, वे दोनों अब सरकार में साथ काम कर रहे हैं. साथ में युवाओं को जॉइनिंग लेटर देते हुए नीतीश कुमार इतने भावुक हो रहे हैं कि उन्होंने एक समय तो तेजस्वी को मुख्यमंत्री तक कह दिया. दोनों के इस तालमेल का नतीजा है कि बिहार में अब नए राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं लेकिन इस संभावित भविष्य में जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल यानी JDU और RJD का अस्तित्व खत्म होने की भी प्लानिंग है.
दरअसल, हिंदुस्तान अखबार की एक रिपोर्ट की मानें तो बिहार में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) अपने बेटे तेजस्वी यादव और सीएम नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार के भविष्य की राजनीति के लिए गठबंधन खत्म कर दोनों दलों का विलय कराने की प्लानिंग कर रहे हैं. इसके जरिए जेडीयू और आरजेडी के भविष्य का खात्मा होने के साथ ही तीर का चुनाव चिन्ह भी खत्म हो जाएगा.
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लालू तेजस्वी हो गए और भी मजबूत
हाल में आरजेडी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ और इसमें लालू यादव के करीबी भोला यादव ने एक प्रस्ताव रखा कि आरजेडी झंडे से लेकर इसके चुनाव चिन्ह तक सभी बदलावों का अधिकार केवल और केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के पास होगा, या फिर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के पास. यह प्रस्ताव जितनी तेजी के साथ आया था उतनी ही जल्दी पास भी हो गया.
लालू ने जनता दल तोड़कर बनाई थी RJD
लालू ने जनता दल तोड़कर 1997 में आरजेडी पार्टी बनाई थी क्योंकि उन पर जनता दल के नेताओं ने चार घोटाले को लेकर इस्तीफा देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था. ऐसे में अब 25 साल बाद लालू पार्टी का चुनाव चिन्ह और अस्तित्व सब कुछ खत्म कर रहे हैं. इसकी अहम वजह यह है कि वे अब नीतीश को नहीं छोड़ना चाहते हैं और उनके साथ मिलकर एक नई पार्टी बनाना चाहते हैं.
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विलय का किया जाता रहा है दावा
गौरतलब है कि हाल में ही जब पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने पार्टी छोड़ी थी तब भी यह दावा किया था कि बहुत जल्द जेडीयू का आरजेडी में विलय हो जाएगा. कुछ ऐसे ही दावे पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से लेकर राज्य भाजपा के कई नेता भी कर चुके हैं. वहीं इससे एक प्रश्न यह भी उठ रहा था कि यदि नीतीश जेडीयू का विलय कर लेते तो दिक्कत क्या थी.
नीतीश की संभावित शर्त
राजनीतिक विश्वलेषकों का मानना है कि नीतीश ने लालू के सामने नई पार्टी की शर्त रखी थी और पार्टी के विलय पर लालू को कुछ नेताओं के छिटकने और पार्टी पर दावा कमजोर होने का भी डर था. शिवसेना की वर्तमान स्थिति इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है. ऐसे में लालू और तेजस्वी ने पार्टी के सिंबल से लेकर उसके नाम और झंडे की ताकत अपने में ही संविधान संसोधन के जरिए निहित कर ली है.
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नीतीश को पीएम बनाने को व्याकुल हैं तेजस्वी
यह भी माना जा रहा है कि जेडीयू में नीतीश के बाद उनका उत्तराधिकारी कोई नहीं है और आरजेडी इसे अपने लिए एक बेहतरीन मौके के तौर पर देख रही है जिससे राज्य में आसानी से तेजस्वी यादव को 2023 के अंत तक सीएम बनाया जा सके. यही कारण हैं कि अब तेजस्वी यादव भी खुलकर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बताकर उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 में लड़ने का हौंसला दे रहे हैं.
साल 2015 में भी हुई थी प्लानिंग
आपको बता दें कि साल 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद साल 2015 में जनता दल से टूटकर अलग-अलग पार्टी बनाने वाले नेताओं ने एक साथ मिलकर जनता परिवार बनाने की प्लानिंग की थी. इसमें दिवंगत मुलायम सिंह यादव की SP, लालू यादव की RJD, नीतीश कुमार की JD(U), एचडी देवगौड़ा की JD(S), अभय चौटाला की INLD और कमल मोरारका की SJP जैसी पार्टियों को एक साथ मिलाकर जनता परिवार बनाने की योजना थी.
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कयास यह भी हैं कि जो काम साल 2015 के दौरान नहीं हो सका था उसे अब बिहार की राजनीति के जरिए एक बार फिर अंजाम देने की रूप रेखा तैयार होने लगी है जिससे बीजेपी को बिहार और देश की राजनीति में लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से एक कड़ी चुनौती दी जा सके.
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