डीएनए हिंदी : दिल्ली में नृत्य नाटिका 'लंका' के जरिए रावण और उनकी पत्नी मंदोदरी की कहानी पेश की गई. इस नृत्य नाटिका में भरतनाट्यम की कलाकार गायत्री शर्मा मंदोदरी की भूमिका में थी जबकि भद्रा सिन्हा रावण के रूप में. इस नृत्य नाटिका से यह संदेश साफ उभर कर सामने आया कि अहंकार हर किसी को ले डूबता है. अहंकार में डूबे शख्स के लिए दूसरे की मेधा भी गैरजरूरी हो जाती है. नृत्य नाटिका में रावण सर्वशक्तिमान राजा के तौर पर पेश किया गया है. भद्रा सिन्हा के नृत्य और भाव से रावण का अहंकारी रूप सामने आया. जबकि रावण की पत्नी मंदोदरी की भूमिका में गायत्री शर्मा ने उसकी धार्मिक प्रवृति और सौम्यता का परिचय दिया.
रामायण के विभिन्न संस्करणों से बुनी कथा
'लंका' में रामायण के विभिन्न संस्करणों और अन्य ग्रंथों के साथ-साथ लोककथाओं के प्रसंग भी लाए गए हैं. इन अलग-अलग प्रसंगों के माध्यम से रावण के चरित्र की कई पहलुओं की पड़ताल की गई है. बताया गया है कि किस तरह एक शक्तिशाली और महाज्ञानी राजा अपने अहंकार की वजह से विनाश की ओर बढ़ता है. 'लंका' सिर्फ रावण की कहानी नहीं है, वह मंदोदरी की भी कहानी है. इस नृत्य नाटिका में ऊंची सोच वाली और धार्मिक मंदोदरी को भी रावण के अहंकार ने नजरअंदाज किया. इसी वजह से मंदोदरी अपने राज्य को बिखरने से नहीं बचा पाई.
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नृत्य नाटिका की शुरुआत कैकसी से
इन नृत्य नाटिका की शुरुआत रावण की मां कैकसी से होती है, जो चाहती है कि उसका बेटा दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शख्स बने. रावण भी अपनी तपस्या से देवताओं को प्रसन्न करने में कामयाब हो जाता है. यहां तक कि रावण ने अपनी विलक्षण मेधा से भगवान शिव को भी प्रसन्न कर लिया.
शूर्पनखा की एंट्री
लेकिन नृत्य नाटिका के अगले हिस्से में जब रावण की बहन शूर्पनखा की एंट्री होती है, तो दर्शकों को साफ नजर आता है कि यहां से रावण का पतन शुरू हो गया है. बता दें कि शूर्पनखा के चरित्र में गायत्री शर्मा थीं. वैसे, इस नृत्य नाटिका में अप्सरा मधुरा के प्रसंग से बताया गया है कि वह शिव के शाप से मंडूक बन गई थी और बाद में वही मंदोदरी के रूप में रावण की पत्नी बनती है. इसी नाटक के एक प्रसंग से यह बात भी सामने आती है कि सीता दरअसल मंदोदरी की पहली संतान थी, जिसे रावण ने दूर देश में दफना दिया था.
जी रतीश की कोरियोग्राफी
ऐसे कई प्रसंगों से गुजरती हुई नृत्य नाटिका जब अपने समापन की ओर बढ़ती है तो वहां रावण का कर्मयोगी रूप भी उभरता है, जो अपने कर्म का पालन करता हुआ अंततः श्रीराम के तीर से प्राण गवां मोक्ष की प्राप्ति करता है. इस नृत्य नाटिका की कोरियोग्राफी प्रसिद्ध कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम प्रतिपादक डॉ. जी. रतीश बाबू ने की थी. इस नाटक का मंचन दिल्ली तमिल संगम में किया गया था.
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