कर्नाटक High Court का आदेश, POCSO एक्ट के साथ जोड़ा जा सकता है नया मुकदमा

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 13, 2022, 08:40 PM IST

सांकेतिक तस्वीर

High Court ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने CRPC की धारा 216 के तहत अपराध के स्थान पर पॉक्सो के अंतर्गत आरोप को जोड़ने का अनुरोध किया था.

डीएनए हिंदी: कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि आपराधिक मुकदमे के दौरान यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) कानून के तहत एक नया आरोप सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के आदेश से जोड़ा जा सकता है. एक केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ये निर्देश दिया.

एक नाबालिग लड़की को अगवा करने, धमकी देने और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति ने कोलार के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा पॉक्सो की धारा 7 के तहत अतिरिक्त आरोप को जोड़ने की अनुमति दिए जाने को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने व्यक्ति की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘संबंधित अदालत के आदेश में कोई त्रुटि नहीं थी.’ 

पॉक्सो कानून के तहत आरोप जोड़ने की गई थी मांग
उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 216 के तहत अपराध के स्थान पर पॉक्सो के अंतर्गत आरोप को जोड़ने के लिए इसमें बदलाव का अनुरोध किया था, जो उचित है. पॉक्सो कानून की धारा 7 नाबालिगों के यौन अंगों को यौन इरादे से छूने के कृत्यों से जुड़े अपराध से संबंधित है. यह यौन इरादे से किए गए ‘किसी अन्य कृत्य' से भी संबंधित है.केस के दौरान पीड़िता ने गवाही दी थी कि आरोपी ने उसके शरीर के गोपनीय स्थानों को छुआ था जिसके कारण अभियोजन पक्ष ने पॉक्सो कानून के तहत आरोप जोड़ने की मांग की.

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पीड़िता एक दिसंबर 2016 को स्कूल जा रही थी तभी बाइक सवार आरोपी ने उसे स्कूल छोड़ने की पेशकश की. लेकिन दो अन्य आरोपियों के साथ उसने चौथे आरोपी से लड़की की शादी कराने के लिए उसका अपहरण कर लिया. लड़की आरोपियों के पास से भाग गई और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई. आरोपियों सहित अन्य पर आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था. मुकदमे के दौरान लड़की द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर अभियोजन पक्ष ने आरोप को बदलने और पॉक्सो कानून के तहत दंडनीय अपराध को भी शामिल करने की मांग की.

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आदेश को हाईकोर्ट ने किया था खारिज
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 12 दिसंबर, 2021 को इसकी अनुमति दे दी. सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को हाल में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने खारिज कर दिया था.

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