फेसबुक यूजर्स अचानक हैरत में हैं कि दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी ने अपनी रिब्रांडिंग क्यों की. फेसबुक कंपनी का नाम बदलकर मेटा कर दिया गया है. मार्क जुकरबर्ग अब यूजर्स को एक नई दुनिया से रूबरू कराने वाले हैं जिसका नाम मेटावर्स होगा. मेटावर्स एक वर्चुअल दुनिया होगी जहां रहने पर यूजर्स कुछ अलग महसूस करेंगे. यही वजह है कि फेसबुक का न केवल ब्रांड नेम बदला बल्कि जुकरबर्ग ने साफ कर दिया है कि वे मेटा के जरिए मेटावर्स की दुनिया में कदम रखने वाले हैं.
भले ही लोग एक अरसे से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते आए हों लेकिन मेटावर्स (Metaverse) एक अनजान टर्म आज भी है. लोग अलग-अलग जिज्ञासाओं के साथ इसके बारे में जानना चाहते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में क्या तब्दीली आएगी, संवाद का कितना तरीका इसके जरिए बदलेगा, क्या यह लोगों की ऑनलाइन गतिविधियों को भी प्रभावित करेगा, लोग बेसब्री से जानना चाहते हैं. इन सब सवालों से इतर एक सवाल यह भी है कि क्या है मेटावर्स और क्यों जुकरबर्ग इसमें इन्वेस्ट करना चाहते हैं.
क्या है मेटावर्स?
मेटावर्स एक समानांतर आभासी दुनिया है जहां यूजर्स अलग-अलग आइडेंटिटी के जरिए वर्चुअल वर्ल्ड में एंट्री करेंगे. वे इस दुनिया में शॉपिंग कर सकेंगे, अलग-अलग चरित्र निभा सकेंगे. आभासी दुनिया की सफर कर सकेंगे. मेटावर्स पोस्ट इंटरनेट दुनिया की क्रांति होगी जिसके जरिए कंप्युटिंग प्लेटफॉर्म्स, असली जिंदगी का आभास कराएंगे.
यह एक पूरी तरह से डिजिटल इकॉनमी पर आधारित होगी. मेटावर्स डिजिटल और फिजिकल दोनों दुनिया में मौजूद रहेगा. मेटावर्स, गेमिंग की दुनिया से अलग होने वाला है. वीसी इन्वेस्टर मैथ्यू बॉल के मुताबिक मेटावर्स अनिश्चित समय तक चलता रहेगा, न ही ये रेस्ट मोड पर जाएगा, न ही इसे रोका जा सकता है.
मेटावर्स कोई ऐसा प्लेटफॉर्म नहीं है जिसे सिर्फ एक कंपनी बना सकती है. न ही फेसबुक अकेला इस पर काम कर रहा है. यहां एक यूजर को सर्विसेज वर्चुअल प्रॉपर्टी या क्रिप्टोकरेंसी के बदले में पेश की जा सकती हैं. मेटावर्स में एक यूजर डिजिटल वर्ल्ड से अलग तरीके से जुड़ जाएगा यह दूसरों के लिए जटिल भी हो सकता है. यह जटिल इसलिए होगा क्योंकि सब कुछ और सभी को इसका हिस्सा माना जा सकता है. डिजिटल इफेक्ट की इस दुनिया में इंटरऑपरेबिलिटी बेहद महत्वपूर्ण होगी.
क्या है मार्क जुकरबर्ग का मेटावर्स प्लान?
मेटावर्स के जरिए लोग वर्चुअली एक-दूसरे से कनेक्ट हो सकेंगे. इसके लिए यूजर को सिर्फ एक जगह मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी. यह ग्लोबल भी हो सकता है. लोग वर्चुअली अपने दोस्तों के साथ हैंग-आउट करेंगे, शॉपिंग करेंगे खेलेंगे, काम करेंगे, सीखेंगे या बहुत कुछ क्रिएटिव कर सकेंगे. फेसबुक इसलिए यह कोशिश कर रहा है जिससे लोग अपना ऑनलाइन वक्त और सार्थक ढंग से बिता सकें.
ऐसा भी हो सकता है कि मेटावर्स अभी यूजर्स के लिए जितना जटिल टर्म लग रहा है आने वाले दिनों में बेहद सामान्य हो जाए और लोग बेहतर तरीके से इसे समझ सकें. जुकरबर्ग का मानना है कि इसे एक दिन में बनाया या तैयार नहीं किया जा सकेगा, इस प्रोडक्ट के अस्तित्व में आने में 10 से 15 साल भी लग सकते हैं. फेसबुक इसे भी जरूरी मानता है कि कैसे मेटावर्स को जिम्मेदारी से बनाया जाएगा, कैसा इसका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा.