मामला बेशक सात समंदर पार का है लेकिन आपके लिए जानना बेहद जरूरी है. क्योंकि बहुत मुमकिन है कि आप भी अपने लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर गूगल Chrome इस्तेमाल करते हों. बहुत मुमकिन है कि गोपनीयता के लिए आप उसका incognito मोड भी इस्तेमाल करते हों, इस भरोसे के साथ कि आपकी ब्राउजिंग हिस्ट्री पूरी तरह प्राइवेट और सुरक्षित है. लेकिन क्या Chrome का इनकॉग्निटो मोड सचमुच सुरक्षित है? प्रचारित तो यही किया जाता रहा है कि जब आप इनकॉग्निटो मोड में कुछ सर्च करते हैं तो आपका कंप्यूटर आपकी वेब ब्राउंजिंग हिस्ट्री को सेव नहीं करता. लेकिन गूगल की पैरेंट कंपनी Alphabet के खिलाफ कैलिफोर्निया की कोर्ट के सामने जो केस आया है उसकी डीटेल्स हम सबको हैरान कर देने वाली हैं.
Google के गले में कैसे कसा कानून का फंदा?
खेल तो साल 2016 से चल रहा था लेकिन लोगों को शक हुआ साल 2020 में. शक ये कि जो लोग गूगल क्रोम बाउजर को इनकॉग्निटो मोड में इस्तेमाल कर रहे हैं उनकी ब्राउजिंग को भी गलत तरीके से ट्रैक किया जा रहा है. गूगल एनालिटिक्स, थर्ड पार्टी कुकीज़ और ऐप्स इस ट्रैकिंग की छूट दे रहे हैं. शिकायत करने वालों ने अपनी बात साबित करने के लिए कोर्ट के सामने गूगल के इंटरनल ईमेल्स भी पेश गए. इन ईमेल्स से साफ जाहिर था कि वेब ट्रैफिक का हिसाब रखने के लिए और विज्ञापनों की बिक्री के इरादे से गूगल इनकॉग्निटो मोड में भी ताकझांक कर रहा है और यूजर का प्राइवेट डाटा जमा कर रहा.
आरोप लगा कि incognito मोड का फर्जी मुखौटा लगाकर गूगल लोगों की प्राइवेसी के साथ खिलवाड़ कर रहा है. ये धोखाधड़ी कितने बड़े पैमाने पर चल रही थी इसका अंदाजा इस बात से लगाइए हर एंड्रॉयड फोन में गूगल का chrome डिफॉल्ट ब्राउजर होता है और SEO ट्रेनिंग कंपनी Backlinko की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में करीब 3.5 अरब लोग इस ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं.
इतना पॉपुलर क्यों है Incognito मोड?
इनकॉग्निटो दरअसल प्राइवेट सर्च का दूसरा नाम है. जब भी आप इंटरनेट पर कुछ सर्च करते हैं तो आपने देखा होगा कि आपका वेब ब्राउजर आपकी सर्च हिस्ट्री को खुद-ब-खुद सेव कर लेता है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि जब आप incognito मोड ओपन करके एक टेंपररी ब्राउजिंग करते हैं तो सेशन खत्म होने के साथ ही यानी आपका ब्राउजर बंद होने के साथ ही आपका सारा डाटा डिलीट हो जाता है. मतलब ये कि आपके फोन या लैपटॉप पर आपकी ऑनलाइन ऐक्टिविटी का कोई निशान नहीं बचता.
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दरअसल आप जिन वेबसाइट्स पर विजिट करते हैं उनकी तरफ से थर्ड पार्टी कुकीज आपकी सारी ऑनलाइन एक्टिविटी को ट्रैक करती हैं, इनका मकसद होता है टार्गेटेड एडवर्टाइजिंग करना. लेकिन इनकॉग्निटो मोड में आपकी ब्राउजिंग हिस्ट्री, कुकीज और साइट डाटा डिलीट हो जाते हैं. इसका फायदा ये होता है कि आम ब्राउजिंग के मुकाबले आपको बाद में एडवर्टीजमेंट कम दिखाई देते हैं. अगर आप कोई सार्वजनिक डिवाइस या किसी और का डिवाइस इस्तेमाल कर रहे हैं तो इनकॉग्निटो मोड में ब्राउज करना बेहतर होता है.
Incognito का सुरक्षा कवच कितना फौलादी?
कंप्यूटर सिक्योरिटी कंपनी McAfee के मुताबिक ये मोड इतना भी प्राइवेट नहीं जितना हम मान लेते हैं. इनकॉग्निटो मोड का फायदा सिर्फ इतना है कि आपने जिस डिवाइस पर ब्राउज किया है उसी पर अगर कोई दूसरा ब्राउज करेगा तो उसको आपकी ब्राउजिंग हिस्ट्री नहीं दिखेगी लेकिन कई बाहरी निगाहें ऐसी हैं जिनके पास इस ब्राउजिंग डाटा का एक्सेस होता है. इनमें से एक निगाह है इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (ISPs) की यानी Jio, Airtel, Vi और BSNL जैसी कंपनियां जो आपको इंटरनेट सर्विस मुहैया करती हैं. दूसरी निगाह है उन वेबसाइट्स की जिनपर आपने ब्राउज किया है. इनकॉग्निटो मोड में भी इंटरनेट प्रोवाइडर्स कंपनी आपका IP (Internet Protocol) एड्रेस उन वेबसाइट्स को भेज देते हैं जिन्हें आप विजिट कर रहे हैं.
IP एड्रेस एक यूनीक आईडी है जिससे आपके इंटरनेट डिवाइस की पहचान होती है. IP एड्रेस के जरिए आपके शहर या घर की लोकेशन तक ट्रैक हो जाती है. आपके प्राइवेट डाटा पर तीसरी निगाह उस स्थिति में सक्रिय होती है जब आप किसी स्कूल का कंपनी के इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये स्कूल या कंपनी आपके इनकॉग्निटो मोड के दौरान हुई ब्राउजिंग हिस्ट्री भी देख सकते हैं. चौथी स्थिति ये है कि आप इनकॉग्निटो मोड में ट्विटर (X) जैसी किसी सोशल मीडिया वेबसाइट पर लॉग इन करते हैं तब भी आपका डाटा प्राइवेट रहने की गारंटी नहीं होती.
Google का कबूलनामा और ईमानदारी की कसम
ऑकलैंड, कैलिफोर्निया की फेडरल कोर्ट के सामने गूगल ने कबूल किया कि उसने क्रोम वेब ब्राउजर के जरिए अरबों लोगों की ब्राउजिंग हिस्ट्री रिकॉर्ड की है जिसमें करीब 13.6 करोड़ लोगों के निजी जानकारी शामिल है. कोर्ट की फटकार के बाद गूगल ने कहा कि वो लाखों यूजर्स का प्राइवेट ब्राइउजिंग डाटा डिलीट करने को तैयार है. ऐसा डाटा जो incognito मोड के दौरान यूजर्स की जानकारी के बगैर इकट्ठा किया गया था. गूगल के खिलाफ ये मुकदमा तो साल 2020 में शुरू हुआ था लेकिन निपटारा अभी हुआ है. मामले को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए गूगल को 5 बिलियन डॉलर चुकाने पड़े. करारनामे के मुताबिक आगे से गूगल ये डिस्क्लोजर भी देगा कि प्राइवेट ब्राउजिंग के दौरान किस तरह का डाटा कलेक्ट किया जा रहा है.
साथ ही वो थर्ड पार्टी कुकीज को टर्न-ऑफ करने का ऑप्शन भी देगा. बल्कि अगले 5 साल तक थर्ड पार्टी कुकीज को बाई डिफॉल्ट ब्लॉक्ड ही रखना होगा. इस घटना का हमारी इंटरनेट प्राइवेसी पर कितना असर होगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि गूगल जैसी दिग्गज टेक कंपनियां अपने यूजर्स का डाटा इकट्ठा करने और उसका इस्तेमाल करने में पहले से ज्यादा ईमानदारी और पारदर्शिता बरतेंगी.
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