क्या सरकार को कबाब पर सब्सिडी देनी चाहिए? जर्मनी में इस समय यही सवाल लोगों की जुबान पर है. जैसे हालात हैं, माना जा रहा है कि आने वाले वक़्त में डिश की कीमत €10 या ये कहें कि 884.50 रुपये से अधिक हो सकती है.
मुल्क में कबाब को कैसे एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया जा रहा है? इसे जर्मन वामपंथी पार्टी की उस मांग से समझ सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि कबाब को आम लोगों के लिए 376.17 रुपये और युवाओं के लिए 188.16 रुपये होना चाहिए. दिलचस्प ये कि कबाब में सब्सिडी के लिए पार्टी ने राज्य निधि का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है.
जर्मनी के वास्तविक राष्ट्रीय व्यंजनों में से एक इस मांसयुक्त फ्लैटब्रेड भोजन के लिए जनता को अपनी जेब से अभी 708 रुपये के आस पास खर्च करने पड़ रहे हैं. लेफ्ट पार्टियों का मानना है कि जैसे जैसे महंगाई बढ़ेगी ये कीमत और ऊपर जाएगी.
गौरतलब है कि वर्तमान में जर्मन राजनीति में कबाब की कीमतें एक मजाक में परिवर्तित हो रही हैं. चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने टिप्पणी की है कि वह जहां भी जाते हैं उनसे इसके बारे में पूछा जाता है.
वामपंथी पार्टी की कार्यकारी समिति के सदस्य कैथी गेबेल ने BILD से बात करते हुए कहा है कि जब युवा ओलाफ से कबाब की कीमतें कम करने की मांग करते हैं तो इसे सिर्फ एक इंटरनेट जोक की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. बल्कि इसे एक बेहद गंभीर मुद्दा माना जाना चाहिए.
कहा ये भी गया है कि. इस अहम मसले पर राज्य को अपना हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि भोजन जैसी चीज विलासिता की वस्तु न बन जाए. अखबार ने गेबेल की पार्टी की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जर्मनी में हर साल 1.3 बिलियन कबाब खाए जाते हैं और प्रस्तावित सब्सिडी पर संभावित रूप से 'लगभग चार बिलियन' खर्च हो सकता है.
पार्टी ने भी इस गंभीर समस्या पर एक अजीब सा तर्क दिया है और कहा है कि का कहना है कि कबाब की दुकानों का किराया और बिजली की लागत बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ रही हैं.
जिक्र जर्मनी और कबाब की बढ़ी हुई कीमतों का हुआ है. तो हमारे लिए ये जान लेना बहुत जरूरी है कि कबाब के मूल्यों ने सिर्फ जर्मनी को ही नहीं चिंता में डाला है यूके का भी हाल मिलता जुलता है. लेकिंन यहां सरकार ने कबाब की कीमत तय करने को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है.