अगर हम लगातार कोशिश करें, तो हम अपनी किस्मत खुद बना सकते हैं और अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं. इस बात को मैनपुरी, उत्तर प्रदेश की अपूर्वा ने साबित कर दिखाया है. अपूर्वा का बचपन एक सामान्य परिवार में बीता. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल से पूरी की. उस वक्त उनके लिए इंग्लिश सीखना जरुरी नहीं था, क्योंकि उनकी पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह हिंदी में हो रही थी. उन्होंने जब इंजीनियर बनने का सपना देखा, तो उन्हें समझ आया कि इसके लिए इंग्लिश आना जरूरी है. अपूर्वा ने भी ठान ली और इंग्लिश सीखने की चुनौती को स्वीकार कर लिया.
उन्होंने टीवी पर इंग्लिश प्रोग्राम देखना शुरू किया, इंग्लिश की किताबें पढ़ीं, और सबसे खास बात, उन्होंने बिना किसी डर के इंग्लिश बोलने की कोशिश शुरू की. यह आसान नहीं था, लेकिन उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें इस भाषा में एक्स्पर्ट बना दिया. अपूर्वा का खुद पर भरोसा उन्हें आगे बढ़ने में मदद करता गया.
अमेरिका में आया देश की सेवा का ख्याल
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) में नौकरी की. टीसीएस में काम करते हुए तीन साल बाद उन्हें अमेरिका जाने का मौका मिला. इस अहसास ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया. अमेरिका में रहकर अपूर्वा के मन में अपने देश की सेवा करने का ख्याल आया.
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हारी लेकिन हार नहीं मानी
अपूर्वा ने सिविल सेवा परीक्षा के साथ-साथ यूपी पीसीएस की भी तैयारी शुरू की, लेकिन यह सफर आसान नहीं था. पहली तीन कोशिश में वह यूपी पीसीएस की परीक्षा पास नहीं कर पाईं. हर नाकामी उन्हें एक नई सीख देती गई. जैसे कि थॉमस एडिसन ने कहा था, 'मैं असफल नहीं हुआ, मैंने 10,000 ऐसे तरीके खोजे हैं जो काम नहीं करते.' अपूर्वा ने भी इसी सोच के साथ अपनी नाकामी को सीख में बदल दिया और लगन के साथ पढ़ाई जारी रखी. आखिरकार चौथी कोशिश में उन्होंने यूपी पीसीएस 2016 की परीक्षा में 13वीं रैंक हासिल की. इस कामयाबी से उन्हें मैनपुरी की पहली महिला एसडीएम बनने का गौरव मिला. उनकी कामयाबी ने साबित कर दिया कि मेहनत और लगन से हर सपना सच हो सकता है. अपूर्वा की ये कहानी उन सभी लड़कियों के लिए सीख है जो बड़े सपने देखने का साहस रखती हैं.
अपूर्वा यादव की कहानी हमें यही सिखाती है कि जब इरादे बुलंद हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. जैसे कि नेल्सन मंडेला ने कहा था, 'हमेशा असंभव लगता है जब तक कि इसे पूरा न कर लिया जाए' अपूर्वा के सफर ने यह साबित कर दिया कि 'जहां चाह, वहां राह.'
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