IRCTC में कैसे करें अपनी पसंदीदा सीट बुक, जानें क्या है पूरी प्रक्रिया

Written By पुनीत जैन | Updated: Jun 21, 2024, 12:23 AM IST

Indian Railways में अपनी पसंदीदा सीट के लिए ऐसे अप्लाई करें

अपनी यात्रा के लिए भारत का एक बड़ा तबका Indian Railways में सफर करना पसंद करता है. ऐसे में टिकट बुक करते समय लोग अपनी मनचाही सीट बुक कर सकते हैं, जिसके लिए वहां सीट प्रेफरेंस का ऑप्शन दिया गया है.

जब बात यात्रा की आती है तो भारत की आधे से ज्यादा आबादी ट्रेन में सफर करना पसंद करती है. भारतीय रेल (Indian Railways) में सफर करना काफी आरामदायक माना जाता है. यात्रियों को इसमें कंफर्ट सीटें, AC कोच की सुविधा, शौचालय की व्यवस्था और खानपान जैसी तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, जो उनकी सफर को और आसान बनाती है.

ट्रेन में टोटल कितनी सीटें हैं वो उसके कोच की संख्या पर निर्भर करता है. ट्रेन के हर कोच में करीब 72 से 110 सीटें होती हैं. इनमें से स्लीपर कोच की सीटें पांच प्रकार की होती हैं. लोअर बर्थ, दूसरा मिडिल बर्थ, तीसरा अपर बर्थ, चौथा साइड लोअर बर्थ और पांचवा साइड अपर बर्थ शामिल होती हैं. आईआरसीटीसी की साइट पर आपको इन्हीं पांच सीटों में से अपनी पसंद की सीट बुक करने का ऑप्शन मिलता है. अब वो कैसे चलिए आपको बताते हैं. 


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ऐसे करें अपनी पसंद की सीट बुक 
दरअसल, जब भी आप ट्रेन की टिकट बुक करते हैं, तो आपको वहां सीट प्रेफ्रेंस नाम का एक ऑप्शन मिलता है. इसकी मदद से आप अपनी पसंदीदा सीट बुक कर सकते हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं है कि आपको मनचाही सीट ही मिले. अगर ट्रेन में कोई खाली सीट होती है तभी आपको आपकी पसंदीदा सीट मिल सकती है.
 


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इस तरह काम करता है सॉफ्टवेयर 
चलिए आपको एक उदाहरण के जरिए समझाते हैं. कल्पना कीजिए कि एक ट्रेन में एस 1 से लेकर एस 10 तक स्लीपर कोच हैं और हर कोच में 72 सीटें हैं. ऐसे में जब कोई व्यक्ति पहली बार ट्रेन की टिकट बुक करता है तो सॉफ्टवेयर उसे बीच वाले डिब्बे में टिकट अलॉट करता है, वही जब कोई व्यक्ति बाद में टिकट बुक करता है तो उसको हमेशा एक ऊपरी बर्थ की टिकट आवंटित की जाती है. 

सॉफ्टवेयर का डिजाइन कुछ इस तरह से किया गया है कि पहले वो नीचे वाली सीटें ही बुक करता है, जिससे गुरुत्वाकर्षण का केंद्र कम रहे. इतना ही नहीं सॉफ्टवेयर को इस हिसाब से भी बनाया गया है जिससे सभी कोच में सामान सीटें बुक की जा सकें. इसकी मदद से ट्रेन का संतुलन बनाने में मदद मिलती है और ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना भी कम हो जाती है.

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