जब Dr Sarvepalli Radhakrishnan को फूलों से सजी बग्घी में स्टेशन छोड़ने गए थे छात्र, जानें उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 04, 2022, 05:02 PM IST

भारत के पहले उपराष्ट्रपति और एक महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर भारत में हर 5 सितंबर को स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों में टीचर्स डे मनाया जाता है.

डीएनए हिंदी: भारत में गुरू शिष्य या कहें अध्यापक और छात्र के रिश्ते को बेहद खास माना जाता है. बिना शिक्षक के हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते है. शिक्षक छात्रों को किताबों के ज्ञान से लेकर जीवन जीने तक की सभी बातों का अच्छे से बताते हैं. स्कूल-कॉलेजों में इस दिन को धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन को खास टीचर्स को क्यों समर्पित किया गया. आखिर टीचर्स डे मनाया क्यों जाता है?

क्यों मनाया जाता है टीचर्स डे?

भारत के पहले उपराष्ट्रपति और एक महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर भारत में हर 5 सितंबर को स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों में टीचर्स डे मनाया जाता है. पहला टीचर्स डे 1962 में मनाया गया था. इसके पीछे भी एक वजह है जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने के लिए कहा तब उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा. उनका मानना था कि इससे देशभर के शिक्षकों का सम्मान होगा जिससे मुझे बहुत खुशी होगी. तभी से 5 सितंबर को हर साल टीचर्स डे के तौर पर मनाया जाता है. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु राज्य के तिरुवल्लुवर जिले के तिरुतनी में हुआ था. वे दूसरे राष्ट्रपति होने के साथ-साथ पहले उपराष्ट्रपति, एक दार्शनिक, भारत रत्न प्राप्तकर्ता, प्रसिद्ध विद्वान, शिक्षाविद और हिन्दू विचारक भी रहे हैं.

Facts about Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

राधाकृष्णन 1952 में देश के पहले उप राष्ट्रपति बने और साल 1962 में वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने.


राधाकृष्णन जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपनी 10 हजार की सैलरी में से केवल 2,500 रुपये स्वीकार किए थे. बाकी की रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवा दी जाती थी.

राधाकृष्णन जी की याद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने Chevening Scholarship और Radhakrishnan Memorial Award की शुरुआत की.

जब राधाकृष्णन ने मैसूर यूनिवर्सिटी से नौकरी छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी जा रहे थे तो सभी छात्र उन्हें एक बग्घी में बैठा कर स्टेशन छोड़ने गए थे. यह बग्घी फूलों से सजी थी.

 

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