डीएनए हिंदी: Odisha News- मौजूदा समय में कोई भी व्यक्ति आपसे महज एक वॉयस कॉल, एक इंस्टेंट मैसेज या एक वीडियो कॉल दूर है. जब ऑफिशियल कम्युनिकेशन ईमेल से भी आगे निकलकर व्हाट्सएप और टेलिग्राम जैसी इंस्टेंट मैसेजंग सेवाओं पर आ गए हैं. ऐसे समय में भी एक भारतीय राज्य की पुलिस संदेशे लाने-ले जाने वाले कबूतर पाल रही है और उन्हें ट्रेंड भी कर रही है. शायद आपको यह सुनकर हैरानी हो रही होगी, लेकिन पूर्वी भारतीय राज्य ओडिशा की पुलिस को अब भी पुराने जमाने की संदेश लाने-ले जाने के तौर तरीकों पर भरोसा है.
100 कबूतर आज भी हैं पुलिस सेवा का हिस्सा
ओडिशा पुलिस में औपनिवेशिक जमाने में शुरू की गई कैरियर पिजन सर्विस आज भी एक्टिव है. इस सर्विस में 100 से ज्यादा बेल्जियन होमर कबूतर (Belgian Homer Pigeon) आज भी सेवाएं दे रहे हैं. Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक, कटक जिले के IG पुलिस सतीश गजभिए के मुताबिक, इन कबूतरों को अपनी ऐतिहासिक अहमियत बनाए रखने और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इन कबूतरों की मौजूदगी को संजोकर रखने की मंशा से सावधानी पूर्वक पाला जा रहा है.
'किसी दिन कम्युनिकेशन सिस्टम फेल हो जाए तो...'
ओडिशा पुलिस के संदेश भेजने की कबूतर सेवा को संजोकर रखने का मकसद वो डर भी है, जो वहां लगातार आने वाली आपदाओं को देखते हुए जायज भी है. दरअसल ओडिशा पुलिस का मानना है कि किसी दिन आपदा के कारण यदि हर तरह के आर्टिफिशियल कम्युनिकेश लिंक फेल हो गए तो ये कबूतर काम आएंगे. बता दें कि अंग्रेजों की गुलामी के दौर में पुलिस स्टेशन एक-दूसरे के साथ संदेश साझा करने के लिए कबूतरों का ही इस्तेमाल करते थे.
कबूतर साबित कर चुके हैं दो बार अपनी अहमियत
ओडिशा पुलिस के कबूतर महज दिखावे के लिए नहीं पाले जा रहे हैं, बल्कि पिछले 4 दशक में दो बार वे राज्य की लाइफलाइन भी साबित हो चुके हैं. साल 1982 में आई जबरदस्त बाढ़ और साल 1999 में भीषण चक्रवात के दौरान राज्य में कम्युनिकेशन सेवाएं ठप हो गई थीं. इस दौरान कम्युनिकेशन करने के लिए ये कबूतर ही काम आए थे.
एक बार में 800 किमी तक भरते हैं उड़ान
ओडिशा पुलिस एक बेहद हल्के ऑनियन पेपर पर संदेश लिखकर उसे एक कैप्सूल में रखती है. इसके बाद यह कैप्सूल कबूतर की टांग में बांध दिया जाता है. इसके बाद ये कबूतर एक बार उड़ान भरकर बिना थके 800 किलोमीटर दूर तक संदेश पहुंचा देते हैं. इस दौरान वे 55 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ान भरते हैं.
5-6 सप्ताह की उम्र में शुरू हो जाती है ट्रेनिंग
एक बर्ड केयरटेकर परशुराम नंदा के मुताबिक, किसी भी संदेशवाहक कबूतर की ट्रेनिंग उस समय शुरू की जाती है, जब वह 5 से 6 सप्ताह की उम्र का होता है. उस समय वे अपने शेल्टर में एक क्रेट में बड़े होने का इंतजार कर रहे होते हैं. इसके बाद वे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, उनकी उड़ान भरने की क्षमता बढ़ती जाती है. अपने इंस्टिक्ंट के जरिये गाइड होने वाले कबूतर महज 10 दिन की ट्रेनिंग के बाद 30 किलोमीटर दूर से अपने घोंसले में लौटने में सक्षम हो जाते हैं. पुलिस को कबूतर ट्रेनिंग में सहयोग करने वाले इतिहासकार अनिल धीर के मुताबिक, हो सकता है किसी अनचाही घटना के चलते कल हर तरह का कम्युनिकेशन मोड ठप हो जाए, लेकिन कबूतर कभी फेल नहीं होते. उन्होंने यह भी कहा कि स्टडी में ये बातें भी सामने आई हैं कि संदेशवाहक कबूतर चुंबकीय क्षेत्र को तलाशने और उसके हिसाब से बेहद लंबी दूरी तय करने की बेहतरीन क्षमता रखते हैं.
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