भारत के इस शहर में रखा है दुनिया का सबसे पुराना घड़ा, साइज किसी टैंकर से कम नहीं

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Apr 18, 2022, 01:03 PM IST

यह घड़ा कोई आज का नहीं बल्कि दो हजार साल पुराना है. यह कुषाण वंश घड़ा है और 40 साल पहले शहर के शेखपुरा मोहल्ले में खुदाई के दौरान मिला था.

डीएनए हिंदी: गर्मियों के मौसम में आपने मिट्टी का घड़ा तो जरूर देखा होगा. देखा क्या इस्तेमाल भी किया होगा. कड़ी धूप में अगर मिट्टी के घड़े का ठंडा पानी मिल जाए तो क्या बात है. अब आपने तो छोटे-मोटे घड़े देखेंगे लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि कन्नौज में एक एक ऐसा घड़ा है जो किसी टैंक के बराबर है. इसे आप दुनिया का सबसे बड़ा घड़ा भी कह सकते हैं. यह घड़ा कन्नौज के एक म्यूजियम में रखा हुआ है और इसमें दो हजार लीटर पानी रखा जा सकता है. यह घड़ा कोई आज का नहीं बल्कि दो हजार साल पुराना है. यह कुषाण वंश घड़ा है और 40 साल पहले शहर के शेखपुरा मोहल्ले में खुदाई के दौरान मिला था.

यह राज्य कभी सम्राट हर्षवर्धन और राजा जयचंद का साम्राज्य हुआ करता था. यहां समय-समय पर हुई खुदाई में कई ऐसी नायाब चीजें निकली हैं. पहली से तीसरी सदी के बीच के कुषाण वंश के दौरान का सबसे बड़ा यह घड़ा उन्हीं में से ही एक है. कन्नौज में नए बने म्यूजियम में कांच के घेरे में सहेज कर रखे गए इस प्राचीन घड़े को देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. इसकी ऊंचाई 5.4 फीट है और इसकी चौड़ाई 4.5 फीट है.

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घड़े के अलावा दूसरे बर्तन भी करते हैं हैरान

यहां हुई खुदाई में करीब दो हजार साल पहले कनिष्क के शासन के समय छोटे-बड़े 40 से ज्यादा बर्तन ही नहीं उसके पहले और बाद के गुप्त काल के दौर में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तन भी मिले. यहां कुषाण वंश से भी पहले यानी 1500 ईसा पूर्व के बर्तनों के अवशेष मिले हैं. पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि कन्नौज में पेंटेड ग्रे वेयर और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर कल्चर था. इससे साफ है कि यहां 3500 साल पहले भी मानव सभ्यता मौजूद थी. 

पुराने समय में पानी जमा करने के लिए होते थे विशाल घड़े

इतिहास के जानकार एवं राजकीय म्यूजियम के अध्यक्ष दीपक कुमार बताते हैं कि अब तक कहीं भी इससे बड़े और पुराने घड़े होने का सुबूत नहीं मिलता है. काफी शोध के बाद ही इस घड़े की उम्र का आंकलन हो सका था. यह करीब दो हजार साल पहले कुषाण वंश के दौरान 78 ई. से 230 ई. के बीच का है. तब गंगा शहर के करीब गुजरती थीं. तब इसी तरह के घड़ों में पानी सहेजने की परंपरा थी. 

दुर्लभ धरोहरों से भरा है यह म्यूजियम

कन्नौज में पिछले पांच दशक से भी ज्यादा समय से पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई नायाब चीजें मिली हैं. फिर चाहे टेराकोटा की मूर्तियां हों या एक हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मुद्राएं. भगवान शिव की कई अलग-अलग मुद्राओं की प्राचीन मूर्तियां भी यहां से निकलती रही हैं. यहां अलग-अलग सदी के शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, बर्तन, पत्थर भी निकलते रहे हैं. हिन्दु, जैन और बौद्ध धर्म से जुड़ी कई विरासत यहां सहेज कर रखी गई हैं. सभी की उम्र का आकलन कार्बन डेटिंग और थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि से किया जा चुका है.

बेल्जियम एग्जिबिशन में गई थी यहां की दुर्लभ मूर्तियां

कन्नौज में खुदाई में निकलीं मूर्तियों ने भारत का नाम विदेश में भी रोशन किया है. इसमें 1100 साल पहले 9वीं शताब्दी में प्रतिहार वंश के दौर की सप्तमातृका मूर्ति में चार देवियों वैष्णवी, बाराही, इंद्राणी और चामूंडा देवी हैं. अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी है. इसमें एक ओर शिव-पार्वती और दूसरी ओर बौद्ध देवी तारा की मूर्ति है. इसे भी प्रतिहार वंश का बताया जाता है. दोनों ही बेल्जियम में लगी अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भारत की ओर से भेजी गई थीं. यूपी के पर्यटन कैलेंडर में भी यह मूर्तियां जगह पा चुकी हैं.

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उद्घाटन हो जाए तो दुनिया देख पाएगी विरासत

बता दें कि कन्नौज म्यूजियम का अब तक औपचारिक उद्घाटन नहीं हो सका है इसलिए कम ही लोग यहां पहुंच पाते हैं. हालांकि यहां देश-विदेश से रिसर्चर आते रहते हैं. साल 2016 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए करीब आठ करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार करवाया था. पांच साल पहले यह म्यूजियम तैयार हो चुका है पर औपचारिक उद्घाटन के लिए शासन से पत्राचार हो रहा है.

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