पहले जो कबूतर वृक्षों पर अपना बसेरा रखते थे, आज उन्हें रहने के लिए घर नहीं बल्कि लोगों की बालकनी का मुंह ताकना पड़ता है.
बढ़ते शहरीकरण के कारण कबूतरों ने लोगों के घरों को ही अपना बसेरा बना लिया है.
लोग कबूतरों से परेशान तो रहते हैं लेकिन वे ये नहीं जानते कि ये कबूतर पर्यावरण के लिए कितने जरूरी हैं.
कबूतर केवल प्यार का संदेश ही एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जाते बल्कि पौधे के परागण में भी मदद करते हैं.
कबूतर बड़ी मात्रा में बीज और अपशिष्ट खाते हैं, जिससे पर्यावरण साफ रहता है. वे कीटों को भी खाते हैं, जिससे उनकी आबादी नियमंत्रित रहती है.
कबूतरों की बीट में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता और पौधों की वृद्धि में मदद कर सकते हैं.
कबूतर कई शिकारी पक्षियों के लिए भोजन का स्रोत हैं, जिनमें पेरेग्रीन फाल्कन, कॉमन केस्ट्रल, शार्प-शिन्ड हॉक्स, कूपर हॉक्स और नॉर्दर्न गोशाक्स शामिल हैं.
कबूतर बचे हुए भोजन, बीज, नट्स और कीड़े खाते हैं, जिससे शहरों में कार्बनिक पदार्थों के संचय को रोकने में मदद मिल सकती है. इससे दुर्गंध और कीटों के संक्रमण की संभावना कम हो जाती है.
कबूतरों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है. कबूतरों को पवित्रता और शांति का प्रतीक भी माना जाता है.