पहले डीजल या बिजली से नहीं, कोयले से ट्रेन चलती थी.
साल 1995 में देश में ब्रॉड गेज में कोयला से चलने वाली स्टीम इंजन का इस्तेमाल बंद हो गया था.
पर कभी सोचा है कि आखिर कोयले से कैसे ट्रेन चलती होगी? आइए जानते हैं.
कोयले को जलाकर उष्मीय उर्जा पैदा की जाती है.
इसकी मदद से पानी के एक बड़े बॉयलर को गर्म किया जाता है. पानी उबलता है और उच्च दबाव वाली भाप बनाता है.
लोकोमोटिव के सामने के पास सिलेंडर की एक जोड़ी में पाइप कनेक्ट होता है.
फायरमैन, फायरबॉक्स में हाथ से कोयला डालता है. कोयले के चारों ओर बने टैंक में टेंडर में पानी ले जाया जाता है. पानी इंजेक्टर इंस्ट्रूमेंट के जरिए लोकोमोटिव तक जाता है.
भाप पिस्टन को धक्का देती है, जिसकी मदद से पहिया घूमता है और ट्रेन सरपट दौड़ती है.
भारत में फेयरी क्वीन ट्रेन नाम से आज भी एक ट्रेन चलती है. 1972 में इसे भारत सरकार ने हैरिटेज का दर्जा दिया था. इसे कभी-कभी दिल्ली से रेवाड़ी के बीच चलाया जाता है.
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे दो फीट चौड़ी पटरी पर चलती है और इसमें कोयले वाले ईंजन लगे होते हैं. इस रेलवे को यूनेस्को से विश्व विरासत साईट का दर्जा मिला है.