Jul 13, 2024, 11:37 PM IST
मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक कितना बदली तवायफों की दुनिया
Smita Mugdha
भारतीय संस्कृति में तवायफों का इतिहास काफी पुराना रहा है और उनके होने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं.
तवायफों और कोठे की संस्कृति में भी वक्त के साथ बदलाव आते रहे और उन पर समय का असर दिखता रहा था.
मुगलों के दौर में तवायफों और कोठों को लेकर एक अलग तरह का आकर्षण होता था और वहां आम लोग कम ही जाते थे.
अंग्रेजों के राज के बाद तवायफों के कोठे पर अदब और तहजीब के साथ नए दौर का संगीत और परंपराएं भी आने लगी थीं.
कोठों पर कुछ अंग्रेज अधिकारी भी आते थे और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के असर से कोठे भी अछूते नहीं रहे थे.
ब्रिटिश दौर में ही तवायफों के कोठे से संगीत रिकॉर्ड करने की परंपरा और आगे सिनेमा का विकास हुआ था.
ब्रिटिश अधिकारियों को तवायफों पर शक रहता था कि वह क्रांतिकारियों की मदद करती हैं और छापेमारी भी किया करते थे.
आजादी के बाद धीरे-धीरे तवायफों और कोठों की संस्कृति खत्म होने लगी और इसके साथ ही अदब और कला के तौर-तरीके भी बदल गए.
मनोरंजन के लिए मुजरे और कोठे पर होने वाली कलाओं के बजाय लोग सिनेमा, थिएटर पसंद करने लगे थे.
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