अर्जुन नहीं एकलव्य की तकनीक से होती है आधुनिक तीरंदाजी
DNA WEB DESK
महाभारत में द्रोणाचार्य अर्जुन को धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते थे. इस वजह से गुरु द्रोण ने एकलव्य को ज्ञान देने से मना कर दिया था.
इसके बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा.
द्रोणाचार्य की मूर्ति के सामने एकलव्य ने खुद से ही अभ्यास करना शुरू किया और धनुर्विद्या में पारंगत हो गया.
पांडवों के कुत्ते का मुंह एकलव्य ने धनुष से बांध दिया था जिसे देख अर्जुन हैरान रह गए क्योंकि अर्जुन को भी धनुर्विद्या का यह रूप नहीं पता था.
अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य से उसके दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया था.
कहा जाता है कि दाहिने हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में देने के बाद भी एकलव्य ने हार नहीं मानी और सिर्फ ऊंगलियों के इस्तेमाल से धनुर्विद्या का अभ्यास किया.
क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में तीरंदाजी या आर्चरी का जो रूप हम देखते हैं उसे एकलव्य की ही देन मानी जाती है.
प्रोफेशनल आर्चरी में अब अंगूठे का इस्तेमाल नहीं होता है और सिर्फ ऊंगलियों का ही प्रयोग किया जाता है.
हो सकता है कि एकलव्य की पौराणिक कथा महज मिथकीय कथा हो लेकिन महाभारत के सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले पात्रों में वह भी शामिल हैं.