Mar 7, 2024, 12:10 AM IST
महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की जाति क्या थी?
Kuldeep Panwar
मेवाड़ के राजपूत राजा महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हल्दी घाटी का युद्ध भारतीय इतिहास की सबसे चर्चित घटनाओं में से एक है.
महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में जबरदस्त वीरता दिखाई थी. उतनी ही वीरता उनके घोड़े चेतक ने भी दिखाई थी और हमेशा के लिए अमर हो गया था.
चेतक एक ऐसा नाम है, जो कोई राजा या योद्धा नहीं होने के बावजूद आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों का अहम हिस्सा माना जाता है.
महाराणा प्रताप की चर्चा उनके प्रिय घोड़े चेतक के बिना हो ही नहीं सकती, क्योकि उनकी वीरता में चेतक की शक्ति और गति का भी बड़ा हाथ था.
क्या आप जानते हैं कि इतिहास में अपनी ताकत के लिए याद किया जाने वाला चेतक किस नस्ल का घोड़ा था यानी उसकी जाति क्या थी?
कुछ लोग चेतक को मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा बताते हैं, लेकिन असल में वह काठियावाड़ी नस्ल का घोड़ा था, जो गुजरात में मिलती है.
चेतक का जन्म गुजरात के चोटीला के पास भीमोरा में हुआ था. काठियावाड़ी नस्ल का होने के कारण ही उसका सफेद रंग नीले जैसा भ्रम देता था.
भीमोरा के एक चारण व्यापारी ने चेतक समेत 3 घोड़े महाराणा प्रताप को दिए थे, लेकिन उनकी परीक्षा केवल चेतक ही पूरी कर सका था.
चेतक इतना शक्तिशाली था कि महाराणा प्रताप के भारी-भरकम कवच और हथियारों के करीब 250 किलो वजन के बावजूद उसे कोई पकड़ नहीं पाता था.
चेतक को महाराणा प्रताप के अलावा कोई भी लगाम में नहीं बांध सकता था. इस कारण वह अस्तबल में राजा की तरह शान से खुला घूमता था.
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप चेतक के चेहरे पर हाथी का मुखौटा लगाकर उतरे थे, जिससे मुगल सेना के हाथी भ्रम में पड़ जाते थे.
इस युद्ध पर लिखी किताबों के मुताबिक, एकतरफ महाराणा की तलवार मुगल सेना को काट रही थी तो चेतक भी लातों के वार से दुश्मन को मार रहा था.
चेतक के सामने आमेर के राजा मानसिंह का हाथी आ गया. चेतक ने उसके मस्तक पर ही पैर रख दिए, जिसके बाद महाराणा प्रताप ने मान सिंह को घायल कर दिया.
हाथी की सूंड में लगी तलवार के कारण चेतक का पैर बुरी तरह कट गया, जिसके चलते महाराणा को हल्दी घाटी का मैदान छोड़ना पड़ा.
हल्दी घाटी से निकलते समय बुरी तरह घायल होने के बावजूद चेतक के कदम महाराणा प्रताप को मुगल सेना से सुरक्षित करने तक नहीं थमे.
बुरी तरह घायल चेतक ने 25-30 फुट चौड़ा नाला भी एक ही छलांग में पार कर लिया, लेकिन मुगलों के अरबी घोड़े ऐसा नहीं कर पाए.
इसके बाद चेतक ने महाराणा प्रताप के सुरक्षित होने पर अपनी जान त्याग दी. कहते हैं कि महाराणा उसकी मौत पर बच्चों की तरह रोए थे.
हल्दीघाटी में ही महाराणा प्रताप ने चेतक की समाधि बनवाई थी, जिस पर आज भी हर साल मेला लगाया जाता है.
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