Nov 23, 2023, 08:35 PM IST

इस मुगल शहजादी ने बनवाया था चांदनी चौक

Kuldeep Panwar

जिस तरह दिल्ली का लाल किला और कुतुब मीनार पूरी दुनिया में फेमस है, उसी तरह यहां के एक बाजार में भी दिल्ली आने वाला हर आदमी जाना चाहता है. ये बाजार है चांदनी चौक की गलियां.

भले ही दिल्ली के बाजारों की चर्चा होने पर खान मार्केट और कनॉट प्लेस का जिक्र होता हो, लेकिन ट्रेडिशनल शॉपिंग की ख्वाहिश चांदनी चौक की गलियों में आकर ही पूरी होती है.

क्या आप जानते हैं कि लाल किले के सामने चांदनी चौक का बाजार बसाने का आइडिया किसका था? उस शख्स ने ही इस पूरे बाजार का डिजाइन भी कारीगरों को समझाया था.

चांदनी चौक का बाजार बसाने वाला ये शख्स थी मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा, जिन्हें अपने समय में दुनिया की सबसे अमीर औरत भी माना जाता था.

जहांआरा को खरीदारी करने का बेहद शौक था, लेकिन दिल्ली में ऐसा कोई बाजार नहीं था. इसके चलते बादशाह शाहजहां ने वर्ष 1650 में उन्हें लालकिले के सामने ही बाजार बसाने की इजाजत दी थी.

जहांआरा ने चांदनी चौक का डिजाइन महज खरीदारी नहीं बल्कि घूमने-फिरने का भी स्थल बनाने के लिहाज से सोचा था. यमुना नदी से इसमें नहर भी निकाली गई थी, जो कभी चांदनी चौक के बीच से होकर बहती थी.

जहांआरा ने इसी कारण चांदनी चौक के दोनों तरफ महज खरीदारी वाले बाजार बसाने के साथ ही खानपान की दुकानों की भी व्यवस्था कराई, जिससे आज दिल्ली को परांठे वाली गली मिल सकी है.

चांदनी चौक का बाजार शुरू में 1,520 गज लंबा और 40 गज चौड़ा था, जिसमें 1,560 दुकानें थीं. ये दुकानें उस समय आधे चंद्रमा के आकार वाले पैटर्न में स्थापित की गई थी.

जहांआरा के बाजार के केंद्र में चांदनी रात में चमकने वाला तालाब था, जिसके चलते यह बाजार चांदनी चौक कहलाने लगा. बाद में यह चांदी के व्यापारियों के लिए फेमस हुआ तो अंग्रेज इसे 'सिल्वर स्ट्रीट' कहने लगे थे.

अपने समय में भारत का सबसे बड़ा बाजार रहे चांदनी चौक से मुगलों के शाही जुलूस निकलने की परंपरा थी. अंग्रेजों ने भी वर्ष 1903 में दिल्ली दरबार के आयोजन पर इस परंपरा का पालन किया था. 

मुगल बादशाह औरंगजेब की बड़ी बहन जहांआरा का यह बाजार आज पूरी दुनिया में मशहूर है, दिल्ली आने वाला कोई भी शख्स चाहे वह देसी हो या विदेशी, ट्रेडिशनल शॉपिंग के लिए चांदनी चौक का चक्कर जरूर लगाता है.