Aug 14, 2024, 04:19 AM IST

इस तवायफ के लिए लड़ गए थे मुगल और अंग्रेज

Aditya Prakash

हम बात कर रहे हैं एक ऐसी तवायफ जो कोठे से महल में रानी समरू बनकर आई, जिसने दिल्ली से सटी सरधाना रियासत पर राज किया. 

इस तवायफ ने मुगलों और अंग्रेजों दोनों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई. 

दिल्ली के चांदनी चौक के एक कोठे में पली खूबसूरत तवायफ फरजाना देखते-देखते ही एक ताकतवर रानी बेगम समरू बन गई.

चांदनी चौक के एक कोठे पर फ्रांस की सेना में रह चुका सैनिक वॉल्टर रेनहार्ट की नजर उसपर पड़ी.

एक से दो मुलाकात में ही वो समरू के प्यार की गिरफ्त में आ गए, और उसे अपने साथ ही रखने लगे.

वॉल्टर और समरू ने शादी कर ली. समरू ने अपना धर्म बदल लिया और वो मुस्लिम से ईसाई बन गई.

बक्सर के युद्ध के बाद वॉल्टर मुगल बादशाह शाह आलम-2 की सेना में शामिल हो गए. बादशाह ने वॉल्टर और समरू को मेरठ की सरधना जागीर इनाम में दे दिया.

वॉल्टर की मृत्यु के बाद समरू के पास सरधना राज की कमान आ गए, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया.

समरू के पास 3000 से ज्‍यादा की फौज थी, इनमें बड़ी संख्या में अंग्रेज और मुगल भी शामिल थे, जो अपनी रानी के लिए दुश्मनों से लड़ गए थे.