Feb 18, 2024, 07:18 PM IST

कौन थीं वो हिंदू रानी, जिन्होंने दहेज प्रथा के खिलाफ जारी किया था फरमान

Rahish Khan

भारत में दहेज प्रथा बड़ी समस्या रहा है. आजादी के पहले से ही दहेज के नाम पर महिलाओं के साथ क्रूर व्यवहार होता रहा है.

भले ही भारत सरकार ने इसे रोकने के लिए सख्त कानून बना दिया हो लेकिन देश के कुछ हिस्सों में आज भी दहेज के बिना बेटियों की शादी नहीं होती. 

इसे रोकने की सबसे पहले पहल दक्षिण भारत के त्रावणकोर रियासत की महारानी गौरी पार्वती बाई (Maharani Gowri Parvati Bayi) ने की थी.

गौरी पार्वती ने ब्राह्मण समुदाय में महिलाओं से शादी करने के लिए अत्यधिक 'वरदक्षिणा' देने के खिलाफ 1823 में शाही फरमान जारी किया था.

इस फरमान का काफी विरोध हुआ था. वर-दक्षिणा- कुछ समुदायों में दहेज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है. 

उस दौरान शादी में लड़कियों के परिवार से दहेज में 1000 से 2000 फणम (यानी एक प्रकार का पैसे) की मांग की जाती थी.

जो व्यक्ति अपनी बेटी की शादी में इतने फणम देने में सक्षम नहीं हो पाता था तो बेटे वाला शादी तोड़ देता था.

1815 से 1829 के बीच त्रावणकोर (वर्तमान दक्षिणी केरल) पर शासन करने वाली रानी गौरी पार्वती बाई ने दहेज प्रथा के खिलाफ बड़ा कदम उठाया था.

उन्होंने 'वरदक्षिणा' के रूप में 700 'कलियान फणम' (एक प्रकार का धन) से अधिक न देने या फिर मांग करने को लेकर सख्त चेतावनी जारी की थी.

महारानी ने चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि जो लोग इसका उल्लंघन करेंगे उन्हें अदालत को सौंप दिया जाएगा और दंडित किया जाएगा.

इससे पहले किसी भी रिसायसत के राजा-रानी ने दहेज प्रथा के खिलाफ ऐसा निर्णय नहीं लिया था. इसलिए उनका यह फरमान का काफी महत्वपूर्ण माना गया.