अयोध्या में 22 जनवरी को इतिहास रचने जा रहा है. इस तारीख को राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा होगा.
राम मंदिर बनवाने के पीछे बहुत किरदार रहे हैं. लेकिन एक शख्स ऐसा था अगर वो नहीं होता तो शायद ही राम मंदिर निर्माण हो पाता.
ये शख्स थे केके नायर, जो उस समय के फैजाबाद यानी अयोध्या के डीएम थे. उनका पूरा नाम कडांगलाथिल करुणाकरण नायर था.
केके नायर ने इंग्लैंड से पढ़ाई की थी और IAS बने थे. हालांकि उस दौरान देश में IAS न होकर ICS हुआ करते थे. वह 1930 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईसीएस थे.
1 जून 1949 को नायर ने फैजाबाद के डीएम के रूप में कार्यभार संभाला था.
22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात को बाबरी मस्जिद में गुपचुप तरीके से रामलला की मूर्तियां रख दी गई थीं.
यह खबर फैलते ही यूपी के मुख्य सचिव ने डीएम नायर को आदेश दिया कि वह मूर्तियों को तुरंत मस्जिद से निकलवाकर राम चबूतरे पर रखवा दें.
लेकिन नायर ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा अगर मैंने ऐसा किया तो अयोध्या के आसपास की कानून-व्यवस्था खराब हो जाएगी.
लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत केके नायर के इस तर्क से सहमत नहीं हुए. वहीं प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का भी दबाव था कि अयोध्या में पुरानी व्यवस्था बहाल की जाए.
सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने फिर से नायर को आदेश दिया कि वह मूर्तियों को हटवा दें. लेकिन नायर ने आदेश मानने से इनकार करते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी.
नायर ने यूपी सरकार को पत्र लिखा कि 23 दिसंबर 1949 की घटना अप्रत्याशित थी और वह उसे वापस नहीं करवा सकते.
उन्होंने सीएम को सुझाव दिया कि मूर्तियों को वहीं रहना दिया जाए और इस मामले को अब कोर्ट के हाल पर छोड़ दिया जाए.
सरकार ने नायर का यह सुझाव मान लिया और मामला कोर्ट में चला गया. जिसके परिणति 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाने के पक्ष में फैसला सुनाया.