दुर्योधन का दामाद था श्रीकृष्ण का ये बेटा, बना था वंश के विनाश का कारण
Kuldeep Panwar
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में खुद लड़ाई नहीं की थी, बल्कि वे महज अर्जुन के सारथी के तौर पर शामिल हुए थे. इसके बावजूद महाभारत की कहानी में वे सबसे अहम माने जाते हैं.
श्रीकृष्ण ने युद्ध में कौरवों और पांडवों, दोनों की तरफ से हिस्सेदार की थी. पांडवों की तरफ से वे महज रथ हांकने वाले सारथी के तौर पर उतरे थे, जबकि कौरवों को उन्होंने अपनी पूरी सेना दी थी.
क्या आपको पता है कि कौरवों के अधर्म की तरफ से युद्ध करने के बावजूद श्रीकृष्ण ने उनकी मदद क्यों की थी? दरअसल इसका कारण श्रीकृष्ण के बेटे और दुर्योधन की बेटी से जुड़ा हुआ है.
श्रीकृष्ण और दुर्योधन आपस में समधी थे यानी उनके बेटे-बेटी का विवाह आपस में हुआ था. श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती के बेटे साम्ब का विवाह दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से हुआ था.
मान्यता है कि साम्ब बेहद बलशाली और रूप व गुणों में अपने पिता श्रीकृष्ण जैसा ही था. दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा भी बेहद सुंदर और गुणवान थी, जिसकी चर्चा उस समय सभी राजाओं में होती थी.
श्रीमद्भागवत के अनुसार, दुर्योधन ने अपनी बेटी लक्ष्मणा के लिए वीर और सुयोग्य वर तलाशने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया. इस स्वयंवर में गए साम्ब को लक्ष्मणा बेहद भा गई. उन्होंने लक्ष्मणा का स्वयंवर से ही हरण कर लिया.
कुछ कथाओं में यह भी कहा गया है कि लक्ष्मणा ने साम्ब को कई बार हस्तिनापुर में देख रखा था और वे साम्ब से प्रेम करती थीं. इसकी जानकारी मिलने पर ही साम्ब उन्हें अपने साथ ले गए थे.
साम्ब अपने साथ लक्ष्मणा को लेकर मथुरा के लिए निकले, लेकिन उनकी इस हरकत से दुर्योधन बेहद क्रोधित हो गया और कौरवों की पूरी सेना ने साम्ब को घेरकर बंदी बना लिया.
दुर्योधन द्वारा साम्ब को बंदी बनाने की जानकारी मिलने पर उनके ताऊ और श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम हस्तिनापुर पहुंचे. बलराम ने दुर्योधन को गदा युद्ध की शिक्षा दी थी और एक तरीके से वे दुर्योधन के गुरु भी थे.
बलराम ने दुर्योधन को कौरवों और यदुवंशियों में युद्ध से नुकसान का डर दिखाया. इसके बाद दुर्योधन ने साम्ब का विवाह लक्ष्मणा से कर दिया और वे श्रीकृष्ण के समधी बन गए.
साम्ब के बारे में आपको एक खास बात और बता दें. श्रीकृष्ण का यही बेटा उनके वंश के संपूर्ण विनाश का कारण बना था यानी उसके कारण ही मौसुल युद्ध हुआ था.
दरअसल, महाभारत युद्ध के बाद 36वां साल शुरू होने पर द्वारिका के पिंडारक क्षेत्र में विश्वामित्र, दुर्वासा, नारद, वशिष्ठ जैसे महर्षि निवास कर रहे थे. इसी दौरान सारण आदि साम्ब को स्त्री वेश में उनके पास ले गए.
उन सभी ने साम्ब को गर्भवती बताते हुए संतान के बारे में पूछा. इससे क्रोधित होकर ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया कि साम्ब के पेट से लोहे का मूसल जन्म लेगा, जो यादवों के विनाश का कारण बनेगा.
महाभारत के मौसुल पर्व के मुताबिक, साम्ब के पेट से सच में मूसल निकला, जिसे चूरा करने के बाद समुद्र में फेंक दिया गया. यह एक मछली के जरिये किनारे पर आकर एरक घास के तौर पर जम गया.
यदुवंशियों में जब किसी बात पर झगड़ा शुरू हुआ तो वे इसी एरक घास को उखाड़कर एक-दूसरे को मारने लगे. हाथ में आते ही यह घास विशाल लौह मूसल में बदल जाती और सामने वाले को मार देती.
इसी मूसल के चूरे का बड़ा टुकड़ा मछली के पेट से मिलने पर एक भील ने उससे तीर बनाया.श्रीकृष्ण के पेड़ के नीचे विश्राम करते समय यही तीर पैर में लगकर उनकी मौत का कारण बना था.
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