क्या निराशा अवसाद है? इस सवाल पर आज कोई सोचता भी नहीं. लोग साधारण तनाव को ही अवसाद समझने की भूल कर रहे हैं.
तनाव और डिप्रेशन में बहुत बड़ा अंतर है. हर किसी को किसी न किसी रूप में तनाव होता है, लेकिन हर किसी को अवसाद नहीं होता.
इसका मतलब यह नहीं है कि अगर आपको तनाव है तो आपको अवसाद है. तनाव होना एक बहुत ही आम समस्या है, इसे डिप्रेशन जैसा मानसिक विकार नहीं कहा जा सकता.
यहां किसी को पढ़ाई की टेंशन है तो किसी को काम की. किसी को शादी की टेंशन है तो किसी को कुछ न मिलने की तैयारी है.
किसी बात को लेकर तनावग्रस्त होना या किसी बात को लेकर दुखी होना बहुत लंबे समय तक नहीं रहता है. समय के साथ मन में यह भावना कम हो जाती है.
एक समय ऐसा आता है जब हमें इसकी जानकारी होने के बावजूद भी यह हमें उतना परेशान नहीं करती. ऐसे दुःख या तनाव को अवसाद से जोड़ना बेमानी है.
कई लोग किसी चीज के न मिलने से मन में पैदा होने वाले डिप्रेशन को यह मानते हैं कि वे वो काम कर रहे हैं जो उनके पास नहीं है.
असल में डिप्रेशन एक बहुत ही गंभीर समस्या है. इस समस्या में इंसान पूरी तरह से बदल जाता है.
डिप्रेशन किसी भी चीज़ में कोई दिलचस्पी नहीं लेता है. कल तक जो चीजें हमें पसंद थीं, वे अचानक हमारी नापसंद बन जाती हैं.
डिप्रेशन में व्यक्ति मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से पीड़ित होता है. व्यक्ति को नींद की आवश्यकता नहीं है, अन्यथा व्यक्ति लगातार सोता रहता है.
लेकिन, लगातार सोने से भी शरीर में ऊर्जा नहीं रहती है. इस दुःख को ख़त्म करने के लिए व्यक्ति अक्सर खुद को मारने के बारे में सोचता है, उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह ऐसा करने की कोशिश भी करता है.
व्यक्ति की कार्यकुशलता, सोचने की क्षमता सब बहुत थक जाती है. दूसरों के सामने मुस्कुराने वाला ये शख्स अंदर से बहुत टूटा हुआ है.
अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से डिप्रेशन का अनुभव कर रहा है. अगर खुद को मारने के अलावा उपरोक्त सभी चीजें उसके साथ हो रही हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि वह तुरंत मनोचिकित्सक से सलाह लें.