Aug 22, 2024, 09:32 PM IST

इस रस्म के बाद तवायफ गैर मर्द के सामने क्यों नहीं करती थीं मुजरा?

Abhay Sharma

भारत में मुजरे का अपना इतिहास रहा है और इसे आमतौर पर तवायफों से जोड़ा जाता है, मुगलों के दौर में मुजरा खूब फला-फूला.

पहले के जमाने में महफिलों का आयोजन किया जाता था, जो मुजरे के बिना पूरा नहीं होता था. मुजरे को तवायफें पीढ़ी दर पीढ़ी चलाया करती थीं.

लेकिन, तवायफों के बीच एक ऐसी रस्म होती थी, जिसके बाद तवायफें अपना जीवन एक आदमी को सौंप दिया करती थीं.

दरअसल, इसे नथ उतराई का रस्म कहा जाता है, जिसमें तवायफों की नाक से नथ उतारी जाती थी. इस दिन एक बड़ी महफिल सजती थी. 

जिसमें तवायफें मुजरा करती थीं, इस मुजरे में जिस तवायफ की नथ उतराई होती थी, उसकी बोली लगाई जाती थी. इसमें बड़े-बड़े अमीर-बादशाह शामिल होते थे. 

जो ज्यादा बोली लगाता था, वो तवायफ उसको अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती थी और दूसरों के सामने मुजरा नहीं करती थी. 

इसके बाद उस तवायफ के लिए कभी महफिल नहीं सजती थी और वह आपने साहब को ही खुश करने में लगी रहती थी.