भारत में उल्लू को धर्म से जोड़ा गया और उसे माता लक्ष्मी की सवारी माना जाता है. दुनियाभर में उल्लू की लगभग 250 प्रजातियां हैं जिसमें से ग्रेट ग्रे उल्लू, बर्न उल्लू और हूटिंग उल्लू प्रमुख हैं.
उल्लुओं की आंखें विशेष रूप से रात में देखने के लिए बनी होती हैं, जिसमें टैपेटम ल्यूसिडम नामक परत होती है जो प्रकाश को दर्शाती है और दृष्टि को सुधारती है.
देखने के साथ-साथ ही उल्लुओं की सुनने की क्षमता भी काफी अच्छी होती है. उनके कान विशेष रूप से सुनने के लिए बने होते हैं जो उन्हें बेहद कम आवाज सुनने में मदद करते हैं.
उल्लू काफी शांत उड़ान भरते हैं और उड़ते समय आप उनकी कोई आवाज नहीं सुन पाएंगे क्योंकि उल्लुओं के पंख विशेष रूप से बने होते हैं जो उन्हें शांत उड़ान भरने में मदद करते हैं.
उल्लू शिकार करने में भी माहिर होते हैं. ये मुख्य रूप से छोटे जानवर जैसे कि चूहे, पक्षियों और कीड़ों को खाते हैं.
उल्लू अक्सर अकेले रहते हैं और प्रजनन के समय ही जोड़े बनाते हैं. वह वफादार होते हैं और अपने साथी के साथ जीवन भर रहते हैं.
उल्लू की औसत आयु 10-15 वर्ष होती है लेकिन कुछ प्रजातियों की आयु 20-30 वर्ष तक भी हो सकती है.
उनकी आयु कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे प्रजाति, भोजन की उपलब्धता, आवास और शिकारियों से सुरक्षा.