Jul 19, 2024, 02:53 PM IST

दुर्योधन के किस संदेह ने पांडवों को जिताया महाभारत युद्ध

Kuldeep Panwar

महाभारत का युद्ध चचेरे भाइयों कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की राजगद्दी के लिए हुआ था, लेकिन इसे धर्म-अधर्म का युद्ध कहा जाता है.

कौरवों को अधर्म का पक्ष बताया गया था, जिनकी तरफ से पूरी दुनिया के योद्धा खड़े थे और पांडव धर्म की तरफ से थे, जिनके साथ श्रीकृष्ण थे.

श्रीकृष्ण की मौजूदगी के बावजूद कौरवों का पलड़ा भारी था और उनका युद्ध जीतना तय था, लेकिन दुर्योधन के एक संदेह ने सारा पासा पलट दिया.

पौरोणिक कथाओं के मुताबिक, महाभारत युद्ध में कौरव सेना की दुर्दशा देखकर दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर पूरी शक्ति से युद्ध नहीं करने का आरोप लगाया.

दुर्योधन ने कहा कि भीष्म पितामह कौरवों के बजाय पांडवों को ज्यादा प्रेम करते हैं और इसी कारण उन्हें ही जिताना चाहते हैं. दुर्योधन के आरोप से भीष्म क्रोधित हो गए.

भीष्म पितामह ने सोने के पांच तीर लिए और उन्हें मंत्रों की शक्ति से सिद्ध कर दिया. उन्होंने कहा कि कल वे इन तीरों से पांचों पांडवों का वध कर देंगे.

दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर संदेह करते हुए उनसे पांचों तीर ले लिए और कहा कि वो युद्धभूमि में खुद उन्हें ये पांच तीर सौंपेगा.

श्रीकृष्ण को भीष्म पितामह के तीरों की जानकारी मिली तो उन्हें चिंता हुई और उन्होंने अर्जुन को बुलाकर उसे दुर्योधन से वचन पूरा कराने को कहा.

दरअसल अर्जुन ने वनवास के दौरान पांडवों का मजाक उड़ाने के लिए वहां पहुंच गए दुर्योधन और अन्य कौरवों की जान गंधर्व सेना से बचाई थी.

दुर्योधन ने जान बचाने के बदले अर्जुन को एक बार कुछ भी मांग लेने का वचन दिया था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दुर्योधन से वचन के बदले भीष्म के तीर मांग लेने के लिए कहा.

अर्जुन ने दुर्योधन के पास जाकर उसे अपना वचन पूरा करने के लिए कहा. दुर्योधन ने तीर देने पर हार निश्चित होने के बावजूद क्षत्रिय धर्म के तहत अपना वचन पूरा किया.

अर्जुन के तीर ले लेने से पांडवों की निश्चित मौत टल गई और युद्ध का नजारा बदल गया. पांडवों ने सभी कौरव योद्धा हराते हुए महाभारत युद्ध जीत लिया.