हिंदू धर्म में महाभारत को एक पवित्र ग्रंथ तथा मुश्किल परिस्थितियों से निकलने के लिए एक प्रेरणादायक महाकाव्य कहा जाता है.
माना जाता है कि श्री कृष्ण और बजरंगबली के कारण पांडवों को युद्ध में विजय मिली थी. अब वो कैसे आइए जानते हैं.
कहा जाता है कि श्री कृष्ण के कहने पर बजरंगबली ने महाभारत युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय लिया था.
हालांकि युद्ध में भाग लेने से पहले उन्होंने श्री कृष्ण के सामने एक शर्त रख दी, जिसे पूरा करने के लिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का सार समझाया था.
कहानियों के अनुसार, श्री कृष्ण ने युद्ध से पहले हनुमान जी और अर्जुन को द्वारका नगरी बुलाया था.
उनके वहां पहुंचने के दौरान श्री कृष्ण ध्यान में मग्न थे. तो अर्जुन और हनुमान जी महल के बाहर समुद्र के किनारे उनकी प्रतीक्षा करने लगे.
इस दौरान अर्जुन ने श्री राम का उपहास उड़ाते हुए कहा कि पत्थर का सेतु बनाना समय की बरबादी थी, राम जी को बाण से सेतु बनाना चाहिए था.
अपने प्रभु के प्रति इन बातों को सुनकर हनुमान जी को आभास हो गया था कि अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर घमंड हो गया है.
हनुमान जी ने अर्जुन के सामने शर्त रखी कि अर्जुन बाण का सेतु बनाए और उनके पैर रखने से अगर वह नहीं टूटा तो वह अग्नि में अपनी देह त्याग देंगे.
अर्जुन ने शर्त स्वीकार की और तीन बार सेतु का निर्माण किया लेकिन तीनों बार सेतु टूट गया. इसके साथ-साथ अर्जुन का भी घमंड टूट गया.
इसके बाद श्री कृष्ण ने दोनों को दर्शन दिए. श्री कृष्ण ने अर्जुन को उनकी गलती का एहसास कराया और हनुमान जी से ध्वज के रूप में अर्जुन के रथ पर स्थापित होने को कहा.
महाभारत युद्ध के दौरान हनुमान जी पूरे 18 दिनों तक अर्जुन के रथ पर ध्वज के रूप में विराजमान थे और अर्जुन संग उनके रथ की रक्षा करते रहे.
ग्रंथों के अनुसार युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन से रथ से उतरने को कहा और खुद भी रथ से दूर चले गए.
उनके कहने पर हनुमान जी ने भी रथ छोड़ा तो वह पल भर में ही भयंकर अग्नि की चपेट में आकर स्वाहा हो गया.